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महालूट व घोटाले का अनोखा उदाहरण यमुना एक्सप्रेस – वे प्राधिकरण – अनुज अग्रवाल,राष्ट्रीय अध्यक्ष , मौलिक भारत

महालूट व घोटाले का अनोखा उदाहरण यमुना एक्सप्रेस – वे प्राधिकरण – अनुज अग्रवाल,राष्ट्रीय अध्यक्ष , मौलिक भारत
आप कैसे भी कमाइए , हमारे पास आकर गंवाए” इस तरह काम करता है यूपी सरकार का गौतमबुद्ध नगर स्थित यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण। जब नीयत में खोट व इरादा लूट का हो तो चोट जनता की गाढ़ी कमाई को ही लगती है। यह कहानी है सन 2001 में बने ताज एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण जिसका नाम सन 2008 में ताज की जगह यमुना कर दिया गया था। नाम बदल गया पर नीयत और नियति नहीं बदली। इन दो दशकों में इस प्राधिकरण के अंतर्गत ही पीपीपी माडल पर दिल्ली – आगरा के बीच तेरह हज़ार करोड़ रुपये की लागत से जेपी समूह द्वारा बनाया गया एक्सप्रेस वे भ्रष्टाचार, हज़ारों करोड़ रुपयों की जमीन की लूट व टोल के नाम पर ठगी का एक बड़ा उदाहरण है।अनेक किसान आंदोलन इस राजमार्ग के भूअधिग्रहण के समय हुए व बहुत खून खराबा भी। तथाकथित अंतरराष्ट्रीय स्तर के इस राजमार्ग ने तकनीकी खामियों ने पिछले नौ वर्षों में हजारों लोगों की जान ले लीं और पूरे राजमार्ग पर इन दो दशकों में जेपी समूह व कुख्यात कलमाड़ी के बिज़नेस समूह के मिलेजुले प्रोजेक्ट फ़ॉर्मूला वन के बंद पड़े स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स व तीन चार ग्रेटर नोएडा से सटे विश्वविद्यालयों के अलावा इंडस्ट्री व आवास के नाम पर जीरो बटा सन्नाटा हो है। स्थापना से लेकर आज तक विभिन्न सरकारें इस प्राधिकरण में साठ हज़ार करोड़ रुपयों से भी ज़्यादा फूंक चुकी हैं व निवेशकों ने भी फायदे के लालच में डेढ़ से दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा निवेश कर दिए हैं मगर आज तक मात्र एक प्रतिशत ही लोग शायद मकानो में रह रहे हों तो बड़ी बात। कुल जमा न उद्योग, न व्यापार न कोई रहने वाला और लाखों करोड़ का निवेश और धेले की भी किसी को कमाई नहीं। समय ऊर्जा , धन और संसाधनों की बर्बादी का यह दुनिया का सबसे अनूठा उदाहरण है जहां निकम्मी नौकरशाही ने लालच की लेमचूस लटका कर हज़ारों- लाखों लोगों को बेवकूफ बनाया है और दो दशकों के बाद भी औद्योगिक शहर का “श” भी नहीं सामने आया। जैसे ही एक एक नाटक व झूठे सब्जबाग असर छोड़ना कम करता है , नौकरशाहों – बिल्डर – नेता लॉबी द्वारा नया शिगूफा छोड़ दिया जाता है। यूपी की गद्दी संभालने वाले सभी राजनेता इनके फैलाए जल्द और खेल में फंसते जाते है। वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इन दिनों इस माफिया के खेल का शिकार हो जेवर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे व फिल्म सिटी के सपने बेच रहे हैं। मौलिक भारत की पड़ताल में इस प्राधिकरण के एक से बढ़कर खेल सामने आए हैं। एक नजर आप भी डालिए –

1) दो दशकों बाद भी इस औद्योगिक प्राधिकरण में एक भी उद्योग नहीं चल रहा है, न ही आवासीय सेक्टरों में कोई रहता है।
2) सबसे बड़े क्षेत्र में फैला होने के बाद भी प्राधिकरण का अपना कार्यालय भी ग्रेटर नोएडा में चल रहा है।
3) नेता-अफसर-बिल्डर का गठजोड़ पहले जमीन अपने परिवार व मित्रों के माध्यम से कौड़ियों के दाम पर किसानों से ख़रीदता है और फिर उस भूमि को अधिग्रहीत दिखाकर कई गुना दाम पर प्राधिकरण को भिड़ा देता है। इसी कारण प्राधिकरण कई हज़ार करोड़ के घाटे व कर्ज में दबा है।
4) धीरे धीरे पोल खुलने पर किसानों ने ज़मीन बेचनी बंद कर दी या अधिक दाम व मुआवजा माँगने लगे और विरोध प्रदर्शन /मुक़दमेबाज़ी करने लगे तो अधिग्रहण व सेक्टर विकास धीमा पड़ता गया। आज तक भी कुल दावे का मात्र बीस प्रतिशत जमीन ही अधिग्रहित हो पाई है।
5) ज़ेवर हवाई अड्डे के लिए भी दावे के विपरीत एक तिहाई जमीन ही अधिग्रहण हो पाया है बाक़ी सब आश्वासन मात्र ही है , किंतु प्राधिकरण के मक्कार अधिकारियों द्वारा शासन से नब्बे प्रतिशत जमीन अधिग्रहण का झूठा दावा किया गया और शासन इसी दावे के भरोसे जल्द ही प्रधानमंत्री जी द्वारा इसका शिलान्यास कराने जा रहा है।
6) प्राधिकरण का अधिकांश बजट जमीन अधिग्रहण के मुआवजे में ही खर्च हो जाता है। जो भी धन सेक्टर के विकास में खर्च किया जाता है उसका बजट भी अधिकारियों द्वारा ठेकेदार को लागत से बीस पच्चीस प्रतिशत बढ़ाकर स्वीकृत किया जाता है व बैक डोर से वापस ले लिया जाता है । ठेकेदार को भुगतान में विभिन्न स्तरों पर 15% तक कमीशन देना पड़ता है।
7) लाख दावों के बाद भी जो थोड़ा बहुत विकास का काम हुआ है वो सेक्टर 17,18,20 (आवासीय) व सेक्टर 21,28,28,30, 31,32 ( इंडस्ट्रियल) मगर न कोई रहने वाला और न कोई उद्योग।बाक़ी और कोई सेक्टर है भी कोई नहीं जानता। मात्र R & R सेक्टर में मुआवजे के एवज में मिले प्लॉट को ही कुछ किसान विकसित कर रहे हैं। अन्यथा दशक पूर्व निवेश कर चुके निवेशक को आज भी प्लॉट का कब्जा नहीं मिला। मिले तब जब अधिग्रहण किया गया हो या प्राधिकरण को कब्जा मिला हो। उल्टे निवेशकों को धमकाया व पेनल्टी आदि व आबँटन रद्द करने के नाम पर धमकाया ज़रूर जाता है। जो कोई प्रोजेक्ट बिल्डर लॉबी द्वारा विकसित भी किए गए हैं उनमे नियम, कानूनों व मापदंडों की खुली धज्जियां उड़ी हैं।
8) हज़ारों करोड़ का बजट होने के बाद भी प्राधिकरण के कुल जमा तीन सौ कर्मचारियों में अधिकांश अन्य विभागों विशेषकर आवास विकास से डेपुटेशन पर आए घाघ कर्मचारी हैं। जो रिटायर हो जाता है वो जुगत लगाकर अनुबंध पर आ जाता है या अपनी रिटायरमेंट की तिथि बढ़वा लेता है। कारण खुली लूट के अपार अवसर।
9) स्वयं प्राधिकरण के सीईओ अरुणवीर सिंह का कार्यकाल भी सेवानिवृत्ति हो जाने के बाद बढ़ाया गया है तो कई विवादित कर्मचारी भी अनुबंध पर कार्यकर रहे हैं। जिनमे ए के सक्सेना, अरविंद कुमार सिंह, एमएन तिवारी, डीआर सिंह, के बी सिंह, राजेश कुमार, लोकेश कुमार सिंह के नाम सामने आए हैं। समझ से बाहर है कि क़्यो नई पीढ़ी के अधिक शिक्षित व योग्य युवाओं के स्थान पर पुराने/अयोग्य लोगों को रिटायर होने के बाद भी अनुबंध के आधार पर रखकर बढ़ी ज़िम्मेदारी दी जा रही हैं? जानकर बताते हैं कि दर्जनों अधिकारी पचास से पाँच सौ करोड़ रुपए की औक़ात रखते हैं और इन सबकी संपत्ति की जांच व उन पर कानूनी कार्यवाही बहुत आवश्यक है। मगर जब पहुँच व सेटिंग ऊपर तक हो कोई क्या बिगाड़ सकता है?
10) जेवर एयरपोर्ट के नाम पर निवेशकों को आकर्षित करने के बीच प्राधिकरण ने लूट का खेल जारी रखने के लिए प्लान -2030/2040 तक की घोषणा भी कर डाली है और नए गांवों को अधिग्रहण के दायरे में लिया जा रहा है मगर पहले की घोषणाएँ, आवंटन, विकास के वादे सब आज भी हवा में ही हैं और ऐसे में इस धोखेबाज़ सफेद हाथी बन चुके प्राधिकरण में कोई भी निवेशक निवेश कर ठगा ही जाएगा। ऐसे में फ़र्ज़ी योजनाओं व विकास के नाम पर जनता से लूट व सरकार के खर्च की अनुमति क्यों यूपी सरकार द्वारा दी जाती रही है यह समझ से बाहर है?
कुल मिलाकर मौलिक भारत का सुझाव है कि यीडा(YEIDA) का ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में विलय कर दिया जाना ही बेहतर है व इसके सभी नए प्रोजेक्ट व विस्तार के कार्यक्रम बंद किए जाने चाहिए । नए सिरे से इस क्षेत्र के विकास की योजना को बनाया जाना चाहिए। ताकि जनता के गाढ़े धन की बर्बादी व लूट बंद हो । साथ ही इसकी सभी भर्तियाँ, आवंटन, अधिग्रहण , खर्च व गड़बड़ियों की जांच हो और सभी दोषियों को कड़ा दंड मिलना चाहिए।
सामान्यतः अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के अनुसार एक नगर के पूर्ण विकसित व आबाद होने का समय अधिकतम एक दशक या उससे भी कम होना चाहिए किंतु ऐसा नहीं हुआ। किसानो से ज़मीन हड़पने की जगह उनको पूरे प्रोजेक्ट में भागीदार बनाया जाना चाहिए था और प्राधिकरण का लक्ष्य विकेंद्रित व सर्वांगीण विकास होना न की बिल्डर- नौकरशाह-नेता- ठेकेदार के माफिया गठजोड़ की लूट। दुर्भाग्य से ऐसा कुछ भी इस प्राधिकरण में आज तक हुआ ही नहीं।
अनुज अग्रवाल
अध्यक्ष, मौलिक भारत
www.maulikbharat.co.in

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