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जन से दूर जनतंत्र कारण-निवारण?

BY : MB

यदि भारत में जनतंत्र है, तो इस जनतंत्र के स्वरूप, कार्यतंत्र, व्यवस्था आदि का निधार्रण जननीति के द्वारा होना चाहिए या राजनीति के द्वारा? यदि निर्धारण का अधिकार जननीति के द्वारा होना चाहिए तो इसके लिए हमें जननेता चुनने चाहिए या राजनेता? प्रस्तुत हैं कुछ ज्वलंत सवाल संवैधानिक तौर पर भारत एक जनतंत्र या राजतंत्र?

यदि भारत में जनतंत्र है, तो इस जनतंत्र के स्वरूप, कार्यतंत्र, व्यवस्था आदि का निधार्रण जननीति के द्वारा होना चाहिए या राजनींित के द्वारा? यदि निर्धारण का अधिकार जननीति के द्वारा होना चाहिए तो इसके लिए हमें जननेता चुनने चाहिए या राजनेता? जननेता यानी जनाधार वाला नेता अर्थात सही मायने में जनप्रतिनिधि। राजनेता यानी जो राज करना चाहता हो, जिसकी मानसिकता राजतांत्रिक हो।

जननेता का चुनाव हो, इसके लिए भारत में चुनाव व्यवस्था है; कायदे-कानून हैं और उन्हे अंजाम देने के लिए चुनाव आयोग है। बावजूद इसके क्या आज हम वाकई जननेता चुन पा रहे हैं?

चुने जाने के बाद जनप्रतिनिधियों पर जनता का कोई नियंत्रण नहीं रहता। यह स्थिति किसी एक स्तर पर नहीं, कमोबेश हर स्तर पर है। ग्राम पंचायत, जिला पंचायत, शहरी निकाय और विधानसभा से लेकर लोकसभा तक; प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक। पंचायत स्तर पर पंचायत प्रधान को वापस बुलाने के अधिकार के बावजूद परिदृ्श्य अनियंत्रित जैसी ही है।

क्या यह सच नहीं है कि हम अपने ही द्वारा चुने हुए Óजनप्रतिनिधिÓ द्वारा शासित हो रहे हैं? यदि हां, तो खामी कहां हैं? हमारे चुनने में या चुनाव प्रणाली या चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली में? इसका जवाब तलाशना चाहिए। संभवत: सुधार की जरूरत तीनो स्तर पर है।

चुनाव की चुनौतियां मतदान जागरुकता के तमाम अभियानों के बावजूद क्या यह सच नहीं है कि हमारे मतदान का आधार जाति, धर्म, वर्ण, वर्ग और निजी लाभ, प्रलोभन के इर्द-गिर्द सिमट गया है? क्या यह सच नहीं है कि धर्म-जाति-वर्ग-वर्ण आदि की छूत लगाये बगैर सत्ता में आना किसी भी दल के लिए असंभव हो गया है? प्रश्न यह है कि मतदान के चुनाव का आधार क्या हो, यह चुनाव आयोग तय करता है, उम्मीदवार या मतदाता? क्या यह सच नहीं है कि आज की पूरी चुनाव प्रक्रिया धनबल, बाहुबल, मीडिया और संवेदनशील मुद्दों के जरिए प्रभावित की जा रही है? क्या यह सच नहीं है कि भारतीय जनतंत्र जनता नहीं, अपराधी, धनपति और कट्टर ताकतों द्वारा संचालित किया जा रहा है? जन, जननेता और जननीति तो कहीं प्रभावी भूमिका निभा ही नहीं पा रहे।

तो दोषी कौन है?
खैर! इस बात को काफी शिद्दत से महसूस किया जा रहा है कि चुनाव से पहले और चुनाव के बाद की जिम्मेदारियों को लेकर मतदाताओं को जागरुक व सशक्त करने के काम को पूरे पांच साल और संगठित तरीके से करने की जरूरत है। यह कैसे हो सकता है? क्या पूरे देश में मतदाता परिषदों का गठन और उन्हे चुनाव आयोग द्वारा अधिकारिक मान्यता की मांग इस दिशा में पहली सीढ़ी हो सकती है? यदि हां, तो कैसे और किन सावधानियों के साथ किया जाना चाहिए? इस पर विस्तार से चर्चा करनी चाहिए। सुधार की दूसरी जरूरत चुनाव प्रणाली और चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली में है। यह बात नई नहीं है। कई संगठनों द्वारा की गई शुरुआत जनमांग कैसे बने? जनसंसद इसमें अहम भूमिका निभा सकती है।

चुनाव सुधार के मुद्दे वर्तमान चुनाव प्रणाली की सबसे बड़ी खामी क्या है? क्या यह प्रणाली धनबल, बाहुबल, परिवारवाद, जातिवाद जैसे अलोकतंात्रिक कदमों पर रोक लगाती है? क्या यह विवेकपूर्ण मतदान को प्रोत्साहित करती है? क्या यह जनता तथा संविधान के प्रति जनप्रतिनिधियों को कर्तव्यनिष्ठ और जवाबदेह बनने के लिए बाध्य करने में सक्षम है? क्या यह राजनीतिक अस्थिरता, दलबदलू प्रवृति आदि अनैतिक प्रवृतियों को रोकने में कारगर है? यदि नहीं तो इसका जिम्मेदार कौन है? क्या इसे बदल जाना चाहिए? यदि हां! तो इसका सही विकल्प क्या है?

धनबल कैसे रुके? चुनावी खर्च कैसे कम हो? पैसा देकर टिकट लेना; पैसा देकर वोट हासिल करना कैसे खत्म हो? क्या इस दिशा में कोई उपाय किए गये हैं? क्या वे कारगर साबित हो रहे हैं? क्या सरकार द्वारा उम्मीदवार का खर्च वहन करने से यह संभव है? क्या उम्मीदवार की बजाय दल चुनने का सुझाया फार्मूला इसमें सहयोगी हो सकता है?

परिवारवाद कैसे रुके? क्या परिवारवाद रुकना चाहिए? यदि हां। तो क्या इसके लिए राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र कायम करना एक कदम हो सकता है? क्या एक परिवार से एक ही सदस्य को चुनाव लडऩे की अनुमति से यह हो सकता है? क्या एक परिवार के एक ही सदस्य को दल का पदाधिकारी का प्रावधान होने से कुछ नियंत्रण होना संभव है? क्या यह लोकतांत्रिक होगा? यदि हां! तो क्या ऐसा करने की कमान चुनाव आयोग को सौंपी जानी चाहिए या और किसी संवैधानिक संस्था की जरूरत महसूस होती है? क्या पार्टी व्हिप जैसे कदम किसी भी दल के आंतरिक लोकतंत्र के खिलाफ व्यवस्था हैं? क्या इस पर रोक लगनी चाहिए?

अपराधियों का प्रवेश कैसे रुके? जिन पर आरोप पत्र दाखिल कर दिया हो, क्या उन सभी की चुनाव में उम्मीदवारी प्रतिबंधित हो या इस में भी कुछ सीमा बनाई जानी चाहिए। जैसे यदि आरोप पत्र ऐसे अपराध के लिए दाखिल किया हो, जिसकी सजा न्यूनतम पांच वर्ष हो आदि आदि। क्या ऐसे प्रतिबंध पंचायत से लेकर हर स्तर के चुनाव पर होने चाहिए? क्या स्वयंसेवी, सामाजिक, सहकारी संगठनों में भी इनकी उम्मीदवारी पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए? प्रतिबंध सिर्फ उम्मीदवारी के लिए होने चाहिए या ऐसे लोगों को मतदान व आम सदस्यता से ही वंचित किया जाना चाहिए?

चुनाव पश्चात् जनप्रतिनिधियों पर मतदाता का नियंत्रण कैसे हो? क्या Óराइट टू रिकालÓ इस दिशा में सही कदम है? इस कदम का कोई व्यापक दुष्प्रभाव तो नहीं है? क्या जनघोषणा पत्र इस दिशा में सहयोगी हो सकता है? यदि हां! तो जनघोषणा लागू करने के लिए चुने गये जनप्रतिनिधि को बाध्य करने के लिए किन संवैधानिक प्रावधानों की आवश्यकता होगी? ग्रामसभा से लेकर लोकसभा स्तर तक मतदाता परिषदों का संवैधानिक ढांचा बने। मतदाता परिषदें अपने-अपने स्तर पर अगले पांच वर्ष के काम व योजना तय करें और जनप्रतिनिधि तथा अधिकारियों को उस स्तर पर उसी योजना के क्रियान्वयन की इजाजत हो। मतदाता परिषदों को उनके इलाके में खर्च हुए हर पैसे के Óपब्लिक ऑडिटÓ का अधिकार हो। क्या यह व्यवस्था होनी चाहिए? क्या इससे लक्ष्य मिल जायेगा?

पांच वर्ष से पहले दोबारा चुनाव कराने की नौबत न आये। यह कैसे हो? क्या एमएमपीएस इसका उपाय है? क्या बहुदलीय सरकारों के स्थान पर एकदलीय सरकारें होनी चाहिए? यदि हां, तो कैसे हो? क्या राज्य और राष्ट्र स्तरीय दलों की मान्यता के लिए तय मानदंडों में बदलाव से यह संभव है? क्या एमएमपीएस से यह संभव होगा? क्या चुनाव पश्चात् गठबंधन पर रोक लगनी चाहिए? यदि हां! क्यों और कैसे?

ञ्चया चुनाव में सीटों का आरक्षण होना चाहिए? विवेकपूर्ण मतदान प्रतिशत कैसे बढ़े? क्या मतदान से पहले और बाद जागरुकता के सतत् अभियान चलाने से बात बन सकती है? क्या नो कैंडिटेट वोट इसका सही उपाय है? क्या आवश्यक मतदान इसका उपाय है? क्या मतदान न करने वाले मतदाता को कुछ अति आवश्यक सुविधाओं से वंचित करके उसे मतदान के लिए बाध्य किया जाना चाहिए? यदि हां ! तो किन-किन सुविधाओं से? विवेकपूर्ण मतदान के मद्देनजर क्या चुनाव की आचार संहिता लागू होने के दौरान उसके उल्लंघन के दोषी उम्मीदवार के साथ-साथ उससे निजी लाभ लेने वाले मतदाता को घूस लेने का दोषी मानकर दंडित किया जाना चाहिए? क्या मतदान का वर्तमान तरीका और माध्यम ठीक व पर्याप्त है? क्या मतदाता की न्यूनतम उम्र ठीक है? एक साथ अधिसूचित चुनावों के लिए मतदान एक ही दिन में होने चाहिए या कई दिन में? मतदान के लिए मतदाताओं को एक ही दिन दिया जाना चाहिए या एक से ज्यादा दिन में किसी एक दिन आकर मतदान का विकल्प देने से कोई फायदा होगा?

कैसे मूल्यांकन करें अपने जनप्रतिनिधि का?

1. क्या आपका जनप्रतिनिधि अपने पद की गरिमा व जिम्मेदारी समझता है?

2. क्या उसकी शिक्षा अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पर्याप्त है?

3. क्या उसने अपने चुनाव के समय चुनाव खर्चों के लिए निर्धारित धन से अधिक धन का उपयोग तो नहीं किया?

4. उसकी आय के स्रोत क्या हैं?

5. क्या वह पैसे/शराब व दावतों के बल पर चुनाव जीता है?

6. क्या वह अपनी पद प्रतिष्ठा का प्रयोग अपने-अपने परिजनों, रिश्तेदार व दोस्तों के काम कराने के लिए तो नहीं करता?

7. क्या उसकी संपत्ति अवैध धन/भूमि व्यापार आदि में आश्चर्यजनक वृद्धि तो नहीं हो रही?

8. क्या वह स्थानीय हित व जनता की मांगों के लिए सरकारी अधिकारियों व सदन में आवास उठाता है?

9. क्या वह चुनावी व पार्टी खर्चों के लिए चेक द्वारा जनता से दान लेता हे अथवा नकद धन स्वयं या व्यापारियों, उद्योगपतियों द्वारा लेता है?

10. क्या वह अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के घर जन्म, विवाह आदि समारोह में नकद पैसे बांटता है? यदि हाँ तो उसके इन पैसों का स्रोत क्या है?

11. क्या उसने पैसे देकर तो टिकिट नहीं खरीदा था?

12. क्या चुनाव से पूर्व भी निरंतर जनता के सम्पर्क में रहता था और जनहित के मुद्दों पर संघर्ष और अपनी प्रभावी भूमिका निभाता रहा?

13. क्या उसमें नेतृत्व के पर्याप्त गुण अथवा अपने पारिवारिक सम्बन्धों, धन, बाहुबल आदि के दम पर राजनीति में उतरा है?

14. क्या उसे सरकारी योजनाओं, उनमें आवंटित धन तथा जनता तक उसकी निरन्तर पहुँच की जानकारी है?

15. क्या उसने जनता की मूल समस्याओं और उनके समाधान की कोई रूपरेखा तैयार की है?

16. कहीं वह धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा के आधार पर तो वोट नहीं मांगता?

17. कहीं वह ठेकों में, सदन में मत देते समय तथा अपने द्वारा आवंटित विशेष निधि में कमीशन तो नहीं मांगता?

18. क्या वह अपने राजनीतिक दल में आंतरिक लोकतंत्र की स्वायतता के प्रति संवेदनशील है और सामूहिक नेतृत्व, सबसे सलाह लेते हुए काम करना पसन्द करता है?

19. क्या वह कार्यकुशल व क्षमतावान कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करता है तथा चमचागिरी व चापलूसी को अधिक महत्व देता है?

20. कहीं वह राष्ट्रविरोधी नीतियों व गुटों को तो परोक्ष समर्थन व सहयोग तो नहीं दे रहा है?​

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