BY : पवन सिन्हा
पिछले दिनों मौलिक भारत और भिवानी परिवार मैत्री संघ द्वारा आयोजित मेहरचंद अग्रवाल व्याख्यानमाला में मौलिक भारत के राष्ट्रीय संयोजक श्री पवन सिन्हा ने ‘मौलिक भारत’ की अवधारणा को स्पष्ट किया। प्रस्तुत हैं उसके प्रमुख अंश :
तना मैंने अध्यात्म पढ़ा है उससे यह समझ आया है कि देशकाल से व्यक्ति का भविष्य जुड़ा होता है। व्यक्ति के भविष्य से देश भले ही उन्नत न हो पाए किन्तु देश का भविष्य खतरे में होगा तो व्यक्ति का भी हो जाएगा। इसीलिए केवल अपने भविष्य की चिंता बंद कर दें।
देश के लिए अभी भी कई लोग अच्छा कार्य कर रहे हैं और उनके कार्यों में कोई बाधा उत्पन्न नहीं कर सकता किन्तु जो अच्छे नहीं हैं वो देश के लिए घातक हैं। पिछले दिनों आपने देखा कि ज्यों-ज्यों दवा की, मर्ज बढ़ता चला गया। भ्रष्टाचार को एक लीगल फ्रेमवर्क देने का प्रयास और चल गया। भ्रष्ट लोग आरटीआई के दायरे से बाहर आने शुरू हो गए।
आज युवाओं को जागरूक किए जाने की जरूरत है क्योंकि 2020 तक हमारा देश युवाओं का देश होगा और इसकी बागडोर उनके हाथों में होगी। किन्तु जब मैं देश के युवाओं को देखता हूं तो दुख होता है कि जिसे भारत का ज्ञान नहीं है वो इस देश को कैसे चलाएंगे। जिन्हें भारत की परंपरा, संस्कृति की समझ नहीं है वो देश को कैसे संभालेंगे? जिन्हें संविधान व कानून का ज्ञान नहीं वो कैसे कानून व्यवस्था कायम करेंगे? इन पीढ़ी को कौन बना रहा है यह सोचने का विषय है। कहीं यह पीढ़ी ‘इंडिया’ की तो नहीं है? जबकि आज ‘भारतÓ की पीढ़ी की आवश्यकता है।
इस देश में योग, ज्योतिष, आयुर्वेद और आध्यात्म हैं जिनके माध्यम से बच्चों व युवाओं के तन-मन-चरित्र पर काम किया जा सकता है। युवाओं को कुछ भी जबरदस्ती नहीं सिखाया जा सकता लेकिन बताया जा सकता है, एक माहौल बनाया जा सकता है।
इंडिया की समझ रखना बुरा नहीं है किन्तु बनना भारत जैसा पड़ेगा, अन्यथा जिन समस्याओं से हम जूझ रहे हैं वो और बढ़ेंगी। जुलाई 1995 से मैं लगातार कह रहा था कि अपने व अपने परिवार के बारे में सोचो लेकिन राष्ट्र को अपने जीवन लक्ष्यों में शामिल करके चलो वरना हालात बहुत कठिन हो जाएंगे और आज वो स्थिति आ गई है। एक मां अपने बच्चे को दूध पिला रही है या सेब खिला रही है तो वह दावे से नहीं कह सकती कि यह शुद्ध हैं। आज यदि कोई आगे बढ़ता है तो अपने साथ किसी को आगे नहीं बढ़ाता। हम जिस देश की संस्कृति का अंधानुकरण करते हैं, एक बार उस देश की संस्कृति में झांक कर तो देख लो, वह अपने साथ अपने राष्ट्र को भी आगे बढ़ाते हैं। वो अपने व्यापार को राष्ट्र के व्यापार से जोड़कर चलते हैं। इसी वजह से वो अन्य देश कब्जाते थे और आज भी कब्जा रहे हैं। यदि हम आज नहीं चेते तो हालात बद से बदतर होते जाएंगे। इसीलिए हमें भारत की मौलिकता को समझना होगा और भारत की ओर चलना होगा। जिस दिन भारतीय होने का अहसास हमें हो गया उस दिन भारत की तस्वीर बदल जाएगी।
मैं तीन विषयों पर बात करना चाहता हूं कि भारत क्या था, क्या हुआ और कैसे वापिस भारत बनाया जाना चाहिए। भारत एक बेहद उन्नत और बेहद विशाल देश था। 180 से पहले के नक्शे में यदि आप पूर्वी हिस्से को देखेंगे तो सबसे बड़ा भूखंड भारत दिखेगा। उसके अतिरिक्त बहुत छोटे-छोटे प्रांत थे। एक इतना विशाल देश जिसके भूखंड को नापना भी मुश्किल था, वहां चन्द्रगुप्त थे, सूर्यवंशी थे, चन्द्रवंशी थे, कोई श्रीलंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान व मंगोलिया नहीं थे। एक ऐसा विशाल खंड जहां भारत की लौ जलती थी। भारत में ज्ञान था और ये दोनों ज्ञान थे-लौकिक भी व परालौकिक भी। संगीत, कला, साहित्य, दर्शन के प्रति हमारी गहन रूचि थी। भारत में हर कला पल्लवित हुई, फूली फली। आज जिन हार्मोन्स की बात की जाती हैं वो 10 हजार वर्ष पूर्व भारतीयों को पता थी। कई बीमारियों के उल्लेख भी सुश्रुत संहिता में पहले से ही मौजूद हैं जिनकी खोज का दावा 17वीं शताब्दी के बाद से किया जाता है। भारत में विशालता और महानता के साथ ही गुण और मौलिकता भी थी। हमारे पास जो ज्ञान है आप वैज्ञानिक रूप से उसी तरह प्रस्तुत कर सकते हैं जिस तरह से बड़े-बड़े वैज्ञानिक कार्यशालाओं में प्रस्तुत करते हैं। हमें फिल्मों व सीरियलों ने भटका दिया। हमें बहुत से धर्म गुरूओं ने भी भटका दिया क्योंकि उन्होंने चमत्कार के नाम पर सही राह नहीं दिखाई। भारतीय समाज जातियों से निरपेक्ष था व वर्ण व्यवस्था में विश्वास करता था। समाज समानता में विश्वास रखता था। मैं दावे से कह सकता हूं कि हिन्दू धर्म और समाजवाद अलग नहीं हो सकते। हिन्दू धर्म में कभी भी पूंजीवाद नहीं आया। हिंदू धर्म ने जिस बांह से बंसी बजाना सीखा था, उसी बांह से बंदूक चलाना भी सीखा। हिन्दू समाज में शांति का वातावरण था किन्तु शांति इस बात पर नहीं थी कि तुम आओ, कुछ भी करो और मैं तुम्हें छोड़ दूंगा। श्रीकृष्ण ने भी कहा था कि दुष्टों का विनाश होना चाहिए। ऐसे भगवान जिन्होंने यह दर्शन दिया और ऐसा हिन्दू समाज जिसने धर्म में अपनी आस्था दिखाकर इसका अनुपालन किया, आज वह यह सब भूल रहे हैं और इसीलिए धर्मनिरपेक्षता का नारा बार-बार दिया जाता है जिसका कोई आधार नहीं है।
अर्थव्यवस्था की बात करें तो मैं श्रीकृष्ण का जिक्र करना चाहूंगा। वह गवैये या रसिया नहीं थे वो बहुत बड़े वैज्ञानिक व अर्थशास्त्री थे। मटकी फोडऩे के बहाने वो स्वदेशी उपभोग की बात करते थे। उनका मानना था कि तुम्हारा मक्खन पहले तुम अपने घर के बच्चों व गांव के लोगों में तो बांट दो, बाद में कंस की सेना को बेचने जाना। आज एफडीआई को बढ़ावा देकर अच्छी चीजें निर्यात और बुरी चीजें आयात करके यहां बेची जा रही हैं। भारत ने हमें कृषि की अर्थव्यवस्था दी। श्रीकृष्ण का जो गौ प्रेम था उसे साधारण मत समझिएगा। वो गाय के पीछे बैठकर बांसुरी राधा के लिए नहीं बजाते थे। बांस से निकलने वाली आवाज से शरीर की वायु शांत होती है और गाय ज्यादा दूध देती है। श्रीकृष्ण अपने भाई के साथ घर छोड़कर ऐसे रास्ते से भागे थे जहां शिशुपाल की सेना उन्हें देख सके जिससे बाकी लोगों को वो सेना मारे नहीं। हम दो मर जाएंगे देखा जाएगा, बाकी लोग तो सुरक्षित रहेंगे। ये होता है हुञ्चमरान, न कि वो जो सुरक्षाकर्मियों के साथ चले। ऐसी हमारी जबरदस्त व्यवस्था और सैन्य शक्ति थी। हम जानते थे धनुष किस प्रकार दूर तक मार कर सकता है। जो दूसरे देशों ने युद्ध की रणनीतियां अपनाई वो श्रीकृष्ण और अभिमन्यु जानते थे। हमने उस वैज्ञानिक धर्म को समझने का कभी प्रयत्न ही नहीं किया।
धीरे-धीरे देश में मुगल आने लगे। वो जानते थे कि भारत को कब्जाने के लिए भारत के धर्म पर प्रहार करना होगा क्योंकि भारत ने राजनीति, अर्थशास्त्र, रक्षा नीति सब धर्म से सीखा था। हमारा धर्म केवल मंदिरों तक सीमित नहीं था इसीलिए उन्होंने धीरे-धीरे पहले धर्म को काटना शुरू किया। उन्होंने हमें धर्म से अलग करना शुरू किया और चापलूसों की एक फौज खड़ी कर दी। आज की राजनीति में भी चापलूस देखे जा सकते हैं। भारत में पुर्तगाली, डच व अंग्रेज भी भारत आएं। आक्रमणकारी सबसे पहले संस्कृति और अर्थव्यवस्था को ही जड़ से काटने का प्रयास करता है। वह सबसे पहले अर्थव्यवस्था पर प्रहार करता है और यदि वह चूक जाता है तो संस्कृति पर प्रहार करता है जिसमें भाषा, वेशभूषा, पूजा-पाठ पद्धति, लौकिक, परालौकिक ज्ञान आदि आते हैं। अंग्रेज परेशान थे कि भारत को कैसे काबू में किया जा सके। गांव उनके साथ समन्वय नहीं करते थे। उन्होंने दूसरा रास्ता अपनाया जो बहुत खतरनाक था और जो हममें से आज कई लोग अख्तियार करे बैठे हैं। इससे बचने की जरूरत है। हमें सिखाया गया कि आप बंजारे लोग हैं। आपका कोई धर्म नहीं था और हमारे अस्तित्व को लेकर भी बहस छेड़ दी। कोई कहता था हम स्विट्जरलैंड से आए हैं और कोई कहता था जर्मनी से आए हैं। चंगेज खां मुसलमान नहीं थे, मंगोलियन थे।
उन्होंने कहा कि जो पढ़े-लिखे लोग हैं वो वहां से आए हैं। एक थ्योरी यह भी कहती है कि रूस के कुछ लोग कश्मीर व गंगा किनारे आकर बस गए। हमारे अस्तित्व पर अंग्रेजों ने प्रहार किया। युवाओं व बच्चों को सिखाया गया कि तुम्हारा कोई इतिहास, भूगोल नहीं है और तुम्हें पालना पोसना व शिक्षित करना अंग्रेजों का दायित्व है। वो एक दिन की नहीं बल्कि सौ साल तक की नीतियां बनाते थे। नालंदा व तक्षशिला में हमारे धर्म, इतिहास व दर्शन आदि की पुस्तकें जला दी गई और फिर हमारे धर्म व इतिहास पर प्रश्न उठाया गया। वहां ऐसा अद्भुत विज्ञान था जो जन्म लेने से बूढ़े होने तक बताता था कि व्यक्ति को कौन-कौन सी बीमारियां हो सकती हैं। हिन्दू अर्थव्यवस्था से संबंधित सारा साहित्य खत्म कर दिया गया। ‘सो कॉल्ड मॉडर्न इंडिया’ ने हमें केवल यह बताया कि आप कबीले के लोग हैं और आपकी कोई संस्कृति, इतिहास नहीं है, कोई विज्ञान नहीं था, कोई भाषा नहीं थी। आप पत्थरों की मूर्तियां बनाकर उसकी पूजा करते हैं। उन्होंने यह सारी चीजें किसानों व अनपढ़ों को नहीं बताई बल्कि बुद्धिजीवियों को बताई। आज वो मैकॉले तो चला गया किन्तु कई मैकॉले इस देश में पैदा हो गए। हमने किताबों में अंग्रेजों की ‘डिवाइड एन्ड रूलÓ की नीति पढ़ी है। यह डिविजन केवल हिन्दू-मुस्लिमों में नहीं था बल्कि हमारे व हमारे इतिहास और हमारी संस्कृति के साथ भी था। इससे मध्ययुगीन इंडिया बनता चला गया जो मॉडर्न इंडिया में तब्दील हो गया। हमारा भारत अपनी मौलिकता के साथ कहीं खो गया है। वो भारत हमारे बीच ही है किंतु वह मॉडर्न इंडिया से डरकर छिप गया है। बहुत सारे लोग इसके लिए चिंतित भी हैं।
1991 की विदेश नीति के बाद जो दोहरी अर्थव्यवस्था बनाई गई है वह एकदम से टूटेगी और भारत की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजरेगी। इंडिया से भारत की ओर जाने के लिए 55 करोड़ युवा आबादी पर ध्यान देना होगा। आज 90 प्रतिशत युवा इंडिया को जानते हैं, भारत को नहीं। भारत की ओर जाने के लिए बच्चों व युवाओं को शिक्षा प्रदान करनी होगी जिसका आधार होगा विज्ञान। इसके लिए अपने व अपने परिवार से ऊपर उठकर जिम्मेदार व्यक्तियों को आगे आना होगा।
राजनीति देश को दिशा दिखाती है। मेरा अनुरोध है कि आप अपने बच्चों को राजनीति को गंदा न बताएं और उन्हें राजनीति में भेजें। श्रीकृष्ण भी एक राजनीतिज्ञ थे। कोई भी देश राजनीति के बिना नहीं चल सकता। हमें राजनीति में जाना होगा किन्तु हमें षड्यंत्रों व षड्यंत्रकारियों से बचना होगा। देश को बेचने वाला व षड्यंत्र करने वाला बुरा है जिससे बचने की जरूरत है डरने की नहीं। मैं विश्व बंधुत्व को राष्ट्र हित के बाद मानता हूं। देश का पुननिर्माण केवल आध्यात्म और शिक्षा करेगी। अध्यात्म चरित्र बनाता है। आज जिस तरह की शिक्षा भारत में है ये इंडिया को भारत नहीं बना सकती। यह इंडिया को सबल इंडिया भी नहीं बना सकती। बच्चों को सिखाया नहीं जा सकता बल्कि बताया जा सकता है। आज बच्चों को सकारात्मक माहौल देने की जरूरत है और उसके लिए खुद को बदलना होगा। राम चाहिए तो स्वयं दशरथ बनना होगा। शिक्षकों के रूप में भी वह लोग हो जिन्हें भारत के बारे में पता हो। श्री पवन सिन्हा जी मौलिक भारत संस्था के राष्ट्रीय संयोजक हैं।