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विमुद्रिकरण (नोटबंदी) के रहस्यमयी आंकड़ों की दुनिया

अनुज अग्रवाल, संपादक, डायलॉग इंडिया

जब विमुद्रिकरण या नोटबंदी की बातें हो रही हों तो इससे प्रभावित लोगों से मेरा मतलब उन 1% लोगों से है जिनके पास देश की 85 से 90% ज्ञात धन संपदा है। नोटबंदी की लाइनों में लगे शेष 99% जनता के 10% प्रतिनिधियों के कष्ट और संघर्ष सचमुच प्रेरणादायक हैं, जिन्होंने मोदी सरकार की 1% तथाकथित संभ्रांत मगर लुटेरे वर्ग की नाक में नकेल डालने के लिए हर कदम पर साथ दिया। मौलिक भारत के माध्यम से हमने भी कदम कदम पर इस कार्य को सुचारू रूप से सम्पन्न करने में सरकार को हर संभव मदद की थी। निश्चित रूप से भ्रष्टाचार और लूट के कारण ठगे आम भारतीयों का मोदी सरकार के साथ खड़े होने का ही परिणाम था कि भारत मे बुर्जुआ वर्ग के खिलाफ एक रक्तहीन क्रांति सफल हो सकी।
रिजर्व बैंक द्वारा 30 अगस्त को नोटबंदी के परिणामस्वरूप देश के बैंकों में जमा 500 और 1000 के नोटों के जो आँकड़े जारी किए गए उनका मख़ौल उड़ाते इसी 1% लुटेरे बुर्जुआ वर्ग की तीखी ओर भद्दी प्रतिक्रियाओ की झड़ी सी लग गयी मीडिया और सोशल मीडिया पर।
क्या सच में नोटबंदी असफल हो गयी और मोदी सरकार ने देश को बेबकूफ बनाया? नहीं बिल्कुल नहीं, सच्चाई बहुत गहरी ओर भयावह है। जी हां कपा देने वाली। अगर मोदी सरकार नोटबंदी के बाद प्राप्त आंकड़ों, तथ्यों और सबूतों को सार्वजनिक कर दे तो इस 1% वर्ग के अधिकाँश लोगों को जेलों में ठूंसना पड़ेगा और भारत में आज के मुकाबले कई गुना जेलें बनाकर भी काम नहीं चलेगा।
डायलॉग इंडिया नोटबंदी से अब तक पूरे घटनाक्रम पर पैनी नज़र रखे हुए है और हमारी जांच पड़ताल कुछ और ही रहस्यों को उजागर कर रही है।
1) देश की 99% जनता जिसके पास देश की कुल धन संपदा का मात्र 10 से 15% है, को हम भ्रष्ट नहीं कह सकते। उसको शेष 1% लोग ही दबाब डालकर भ्रष्ट बनाते हैं। इस 99% जनता का पैसा पूरी ईमानदारी से बैंकों ने जमा किया और उनसे संबंधित रिजर्व बैंक के आंकड़े बिल्कुल सही हैं।

2) खेल देश की 1% समृद्ध जनता का है। इसमें राजपत्रित सरकारी कर्मचारी, नेतागण, जनप्रतिनिधियों की जमात, उद्योग, व्यापार, ठेके से जुड़े लोग, प्रमुख वकील, जज, मीडिया हाउस, धर्म गुरु और सामाजिक और धार्मिक संगठन और संस्थाएं हैं।
3) जब हमने अनोपचारिक रूप से इस समृद्ध तबके को कुरेदा तो सैकड़ों ने स्वीकार किया कि उनके पास करोड़ दो करोड़ से लेकर हज़ारों करोड़ तक पुरानी करेंसी अभी भी पड़ी है या उसका नष्ट कर दिया है जो कालाधन होने के कारण बैंकों में जमा नहीं कर पाए। अगर आकलन किया जाए तो यह नष्ट की गई या जमा न होने वाली राशि कुल जमा राशि से दुगनी है। यानी देश मे नकली, अवैध या एक ही नम्बरों के दो नोट भारी मात्रा में उपलब्ध थे जो मुद्रा प्रसार को बढ़ा देश की अर्थव्यवस्था को खोखला कर रहे थे।
4) देश मे अवैध एवं नकली मुद्रा विदेशी दुश्मन देशो द्वारा, अंतरराष्ट्रीय माफिया द्वारा ओर देश मे फैले नकली मुद्रा के संगठित अपराधियों द्वारा ( पाकिस्तान, बांग्लादेश, दाऊद इब्राहिम गैंग, सीआईए आदि) फैलाई गई थी और एक ही नम्बर के दो दो नोट निश्चित रूप से वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक और करेंसी छापने से जुड़ी प्रेस के कर्मचारियों के सिंडिकेट के द्वारा फैलाए गए थे(तेलगी घोटाल, चिदम्बरम पर अवैध करेंसी छापने के आरोप)।
5) नोटबंदी के दौरान उत्तर प्रदेश में मुलायम, माया, बेब समूह ओर जेपी समहू सहित सभी बड़े बिल्डरों के पास 10-20-50 हज़ार करोड़ रुपये नकद होने की खबरें आई थी। अधिकांश नोकरशाहो की भी 60 से 70 प्रतिशत रकम बैंकिंग तंत्र में नही आ पायी थी। महाराष्ट की बात करें तो शरद पवार सहित अनेक राजनेताओं और बिल्डरों के पास नकदी होने के आंकड़े उत्तर प्रदेश से टेरन गुने थे। यही खबरे दिल्ली में गांधी परिवार और उनके भाजपा व कांग्रेसी सहित राजनीतिक दलों के नेताओ,चेन्नई, कोलकाता, पुणे, हैदराबाद, बंगलोर आदि दर्जनों शहरो के हैं। बुंदेलखंड खण्ड के बीहड़ों, गोदामों, नदियों, तहखानों से लेकर कूड़े के ढेरों के अंदर की अगर ठीक से तलाशी ली जाए तो समर्द्ध वर्ग द्वार लाखों करोड़ नष्ट किये या छुपाए गए नोटो के निशान मिल जाएंगे। निश्चित रूप से यह अवैध गहन 30 से 40 लाख करोड़ रुपयों से कम नहीं है।

6) सच्चाई तो यह है कि रिजर्व बैंक को भी नहीं पता कि उसके पास आये नोटो में कितने नकली हैं या कितने दो नम्बर वाले। इसीलिए 99% जनता द्वारा ईमानदारी से जो भी जमा किया गया बिना किसी हील हुज्जत के स्वीकार कर लिया गया और 1% समृद्ध वर्ग के लोगों से अनोपचारिक डील के हिसाब से। यानि जितना अकाउंट में नम्बर एक मे पिछले बर्षो में टर्नओवर दिखाया उसी के आसपास स्वीकार किया जाएगा। शेष पर टैक्स ओर पेनल्टी ही इतनी थी कि अधिकांश ने पोल खुलने के डर से नष्ट करना या छुपाना ही उपयुक्त समझा।
7) नोटबन्दी के उपरांत देश मे आतंकी ओर नक्सली नेटवर्क बुरी तरह टूट गया है। साम्प्रदायिक ओर जातीय दंगे दस गुना कम हो गए हैं। राजनीतिक उत्पात अब 2 से 3 घण्टों में नियंत्रित हो जाते हैं। देश के अंदर होने वाले चीन, पाक, चर्च ओर कट्टरपंथी उत्पात अब सीमा पर होने लगे और पाक ओर चीन की सेनाओं को स्वयं मोर्चा संभालना पड़ा है जिससे उनकी पोल तो खुली ही , अन्तर्राष्ट्रीय मंचो पर किरकिरी भी हुई है। देश में 15 से 20 प्रतिशत तो ही वेध रूप से होने वाले आंतरिक ओर विदेश व्यापार अब 50 से 60 प्रतिशत तो वैध हो गए हैं और निकट भबिष्य में ये 80 प्रतिशत तो वैध होते जाएंगे। इससे सरकारी आमदनी तेजी से बढ़ने की उम्मीद है और कर दरों के उत्तरोत्तर कम होने की भी।
8) देश में जमीनों ओर मकानों के दाम कम या स्थिर हो गए हैं। कई लाख फर्जी कम्पनियों को बंद कर दिया गया है। आधार कार्ड, पेन नम्बर ओर बैंक अकाउंट जोड़े जा रहे हैं। सम्पतियों को आधार कार्ड से जोड़ा जा रहा है।डिजिटल पेमेंट को बढ़ाबा दिया जा रहा है।डॉलर के दाम 69 रुपये से घटकर 63 रुपयों तक आ गए हैं। अगले 6 माह में जी एस टी पूरी तरह लागू होने के बाद कीमतों में स्थिरता आती जाएगी।अब सरकारी धन की लूट संभव नहीं क्योंकि डिजिटल पेमेंट और ई टेंडरिंग ने खेल बदल दिए हैं। देश में जिस तीव्र गति से ढांचागत विकास हो रहा है वह अगले कुछ बर्षो में तीव्र औधोगिकरण का मार्ग प्रशस्त कर रहा है, जी निर्यात में वृद्धि और आयात में कमी का कारक तो बनेगा ही भारी मात्रा में रोजगार भी पैदा करेगा।
9) अब सवाल दोषियों को दंड दिए जाने की भी है। जब सरकार को पता है कि किन किन के पास अवैध धन था तो उनके खिलाफ कार्यवाही क्यो नही? जबाब सीधा साधा है। चूंकि देश मे पिछली सत्तारुढ़ सरकारों ने परोक्ष रूप से देश को लूटने ओर भ्रष्टाचार की संस्कृति को बढ़ाबा दिया ऐसे में क्या अपना ओर क्या पराया सबने खुले हाथों लूटा। अब किस किस को पकड़े? पूरे कुए में ही भांग पड़ी है। बेहतर है कि उनकी काली कमाई को बेकार कर दो और जिन जिन रास्तों का वो प्रयोग करते थे उन्हें बंद कर दो। बेचारे सारे लुटे पिटे बैठे हैं, सालो साल जो सरकार और जनता को लूटा सब कुछ ही पलों में ढेर हो गया। आने वाले समय मे कमा कर छुपाने के या खपाने के रास्ते ही सीमित हो जाएंगे फिर आटे में नमक जितना ही खेल बचेगा। बाकी सबूत भी हैं और गवाह भी सरकार के पास और सरकार ने कब कहा कि वो कार्यवाही नहीं करेगी या दोषियों को दंड नहीं देगी?
10),बहुत तेजी से दोषियों को लपेटने को सरकार भी उतावली नहीं। उसे पता है अर्थव्यवस्था दबाब में है और ज्यादा सख्ती एक साथ करने पर बिखर सकती है। पहले अर्थव्यवस्था रास्ते पर लाओ, फिर चाबुक घुमा दो। और जिन जिन पर पड़ रही है इस चाबुक की मार वो ही तो असफल ठहरा रहे हैं इस नोटबंदी को।

अंत मे महत्वपूर्ण बात, अगर सरकार ने कुछ बदमाशी की है, तथ्य छुपाए है , आंकड़ों में हेराफेरी की है, राजनीतिक फायदे उठाये हैं, दोषियों को बचाया है या ढीली पड़ गयी है उनके खिलाफ इसलिए तो यह हट जानी चाहिए। मगर बात तो नीयत की है। यूपीए की लुटेरी सरकार लोकपाल, आर टी आई, बिसिल ब्लोअर बिल ओर न जाने कितने कानून लायी एमजीआर लूट कम न हुई और मोदी की एनडीए सरकार ने इन सभी कानूनों को लागू नहीं किया फिर भी लोग भ्रष्टाचार करने से घबरा रहे हैं। कुछ बात तो है दोस्तों।
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया
www.dialogueindia.in

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