मूर्ख होने के लिए ”श्रमजीवी” होना आवश्यक नहीं है, ”बुद्धिजीवी” भी मूर्ख हो सकते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो सुप्रीम कोर्ट के किसी प्रसिद्ध वकील का भी मूर्ख होना संभव है और जिसे जनसामान्य उसकी पेशेगत मजबूरी के मद्देनजर मूर्ख मानते रहे हों, वह किसी मुकाम पर जीनियस साबित हो सकता है। बात सिर्फ अवसर या संदर्भ उपस्थित होने की है।
मूर्खता या बुद्धिमत्ता का आंकलन किसी के पेशे अथवा उसकी पेशेगत प्रसिद्धि से नहीं करना चाहिए, यह बात सुप्रीम कोर्ट के मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने एकबार फिर साबित कर दी है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा गठित किए गए पुलिस के ”एंटी रोमियो स्क्वॉयड” पर टिप्पणी करने के चक्कर में प्रशांत भूषण ने योगीराज भगवान श्रीकृष्ण को ही न सिर्फ ”लेजेंड्री ईव टीजर” बता डाला बल्कि योगी सरकार को इस आशय की चुनौती भी दी कि यदि उनमें हिम्मत है तो वह इस स्क्वॉयड का नाम ”एंटी कृष्ण स्क्वॉयड” रख कर देखें।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रहे मार्कन्डेय काटजू ने कुछ समय पहले कहा था कि हिंदुस्तान की 90 प्रतिशत आबादी मूर्खों से भरी पड़ी है। काटजू की कही बात तब अतिशयोक्ति महसूस हुई थी, किंतु अब लगता है कि शायद वह सही कह रहे थे।
कोई अस्त्र-शस्त्र उठाए बिना महाभारत जैसे भीषण युद्ध के नायक की उपाधि प्राप्त करने वाले तथा 16 हजार रानियां रखकर भी योगीराज कहलाने वाले जिन भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र पर आज उनके जन्म से पांच हजार साल बाद तक विश्व के तमाम देश रिसर्च कर रहे हों, अर्जुन को दिए गए जिनके उपदेशों का एक-एक श्लोक आज भी लोगों का जीवन दर्शन बना हुआ हो, उनके चरित्र की तुलना शेक्सपीयर के एक पात्र रोमियो से वही व्यक्ति कर सकता जिसका बुद्धि से दूर-दूर तक कभी कोई वास्ता ही न रहा हो।
ऐसा लगता है कि प्रशांत भूषण के पास जितनी भी बौद्धिक क्षमता थी, वह उन्होंने कानून की किताबें पढ़ने और धाराएं रटने में लगा दी। इसके इतर उन्होंने कभी कुछ जानने व समझने की कोशिश नहीं की।
प्रशांत भूषण ने यह तो साबित कर दिया कि भगवान श्रीकृष्ण को समझने की क्षमता उनमें दूर-दूर तक नहीं है, साथ ही उन्होंने यह भी जाहिर करा दिया कि वह व्यावहारिक ज्ञान से महरूम हैं।
व्यावहारिक ज्ञान का ताल्लुक रोजमर्रा में पड़ने वाले उन क्रिया-कलापों एवं आचार-विचारों से होता है जो किसी किताब में नहीं लिखे होते। जिन्हें हर व्यक्ति को वक्त और परिस्थितियों के हिसाब से समझना पड़ता है। व्यावहारिक ज्ञान यह भी बताता है कि कौन सी बात कब कहनी है और किस तरह कहनी है। गलत वक्त पर कही गई कथित सही बात भी अनादर अथवा बेइज्जती का कारण बन सकती है।
प्रशांत भूषण तो खुद इसके भुक्तभोगी भी हैं। कश्मीर पर अपने निजी विचार व्यक्त करके वह इसका अनुभव कर चुके हैं।
प्रशांत भूषण की भगवान श्रीकृष्ण पर की गई टिप्पणी को लेकर कांग्रेसी नेता जीशान हैदर ने उनके खिलाफ लखनऊ के हजरत गंज थाने में धारा 295/A और 153/A के अंतर्गत मामला दर्ज करा दिया है।
जीशान हैदर ने इस बावत पुलिस को दी गई अपनी तहरीर में लिखा है कि भगवान श्रीकृष्ण पूरे विश्व में न सिर्फ करोड़ों हिंदुओं बल्कि समस्त मानव जाति के प्रेरणास्रोत हैं।
यहां गौर करने लायक है यह बात कि प्रशांत भूषण के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने वाले जीशान हैदर न केवल प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस से ताल्लुक रखते हैं बल्कि मुस्लिम समुदाय से हैं।
जाहिर है कि जिस व्यावहारिक ज्ञान की अपेक्षा बुद्धिजीवियों से की जाती है, उससे सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध अधिवक्ता प्रशांत भूषण का तो कोई संबंध नजर नहीं आया अलबत्ता एक नेता ने यह साबित अवश्य कर दिया कि कृष्ण का चरित्र जाति व धर्मों से भी परे तथा निर्विवाद रूप से अनुकरणीय है।
वैसे भी इतिहास ऐसे इस्लामिक धर्मावलंबियों, फनकारों तथा साहित्यकारों से भरा पड़ा है जिन्होंने श्रीकृष्ण को अपनी साधना का अंग बनाकर रखा। अनेक सूफी-संतों ने कृष्ण का अपने-अपने तरीके से गुणगान किया क्योंकि कृष्ण का चरित्र किसी धर्म अथवा जाति विशेष का प्रतिनिधित्व नहीं करता। कृष्ण ने तो अपनी हर लीला में, अपने प्रत्येक क्रिया-कलाप में मानव मात्र की भलाई का संदेश दिया है।
यही कारण है कि श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को माध्यम बनाकर दिए गए उपदेश सिर्फ युद्ध के लिए प्रेरणा न होकर एक ऐसा जीवन दर्शन थे जिनमें मानव मात्र का कल्याण निहित था।
संभवत: इसीलिए हजारों साल बाद भी ”गीता” एक सर्वमान्य ग्रंथ बनी हुई है और श्रीकृष्ण सर्वमान्य अवतार।
दुनिया के पता नहीं कितने देश गीता और कृष्ण को समझने की अनवरत चेष्टा जरूर कर रहे हैं किंतु किसी ने न तो कभी कृष्ण के चरित्र पर उंगली उठाई और न कभी उनकी कही हुई गीता पर।
”ओशो” के नाम से प्रसिद्ध विवादास्पद धर्मगुरू आचार्य रजनीश ने भी अपनी मशहूर किताब ”कृष्ण मेरी दृष्टि” में कृष्ण को आश्चर्यजनक व्यक्तित्व बताया है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी व्याख्या करना संभव नहीं है।
जो एक ही साथ योगी भी है और भोगी भी, नर्तक भी हो और योद्धा भी, ग्वाला भी है और राजा भी, उत्कट प्रेमी भी है और पूरी तरह निर्मोही भी।
महान इतने कि ”सेस, गनेस, दिनेस, महेस, सुरेसहु जाहि निरंतर ध्यावें…और लघु इतने कि ”ताहि अहीर की छोहरियां छछिया भरि छाछ पै नाच नचावें”।
प्रशांत भूषण ने कृष्ण के बारे में अपने विचार व्यक्त करके एक ओर जहां यह बता दिया कि किताबी जानकारी डिग्रियां तो दिला सकती है किंतु ज्ञान का माध्यम नहीं बन सकती वहीं दूसरी ओर यह भी जाहिर कर दिया कि अपराधियों के प्रति उनके मन में हमेशा ही सहानुभूति उमड़ती है, फिर चाहे वह फांसी की सजा प्राप्त कुख्यात आतंकवादी याकूब मेनन हो अथवा सड़क पर लड़कियों एवं महिलाओं के मान-सम्मान से खिलवाड़ करने वाले अपराधी तत्व।
प्रशांत भूषण की आतंकवादियों और अपराधियों के प्रति ऐसी सहानुभूति ही काफी है यह समझने के लिए कि उनकी मानसिकता और सोच क्या है तथा उनकी बुद्धि का किस हद तक दिवाला निकला हुआ है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी