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उ.प्र. – उपभोक्ता अदालतें बिकाऊ हैं?

उ.प्र. – उपभोक्ता अदालतें बिकाऊ हैं?

दिनांक 13 अगस्त 2015 को उ.प्र. राज्य उपभोक्ता प्रतिकोष आयोग द्वारा राज्य के पचास जिलों में जिला उपभोक्ता घोटालों में अध्यक्षों के उन्नीस एवं सदस्यों के उड़ंचास पदों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरु होने के विज्ञापन अखबारों में प्रकाशित होते ही बवाल खड़ा हो गया।
जानकार बता रहे हैं कि पूरी की पूरी भर्ती प्रक्रिया नियमों को ताक पर रखकर की जा रही है और ऐसे पदों व जगहों के लिए विज्ञापन निकाल दिया गया है जहां अभी अगले दो से तीन साल तक भर्तियों की जरुरत ही नहीं है क्योंकि वहां पहले से ही जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष एवं सदस्य नियुक्त हैं व उनके तुरन्त सेवानिवृत्त होने की कोई संभावना नहीं है। क्या यह सारा खेल पैसा बनाने का ही है? क्यों हुआ ऐसा विज्ञापन जारी?

जब मौलिक भारत एवं डायलॉग इंडिया की टीम इस मामले की पड़ताल करते हुए गहराई में गई तो उसे एक बड़े घोटाले व लेन देन की बू आयी। मामले की जड़ में उ.प्र. उपभोक्ता प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वीरेन्द्र सिंह यादव का नाम उछलने लगा। यह ञ्जाी खबर है कि अखिलेश यादव सरकार वीरेन्द्र सिंह को लोकायुञ्चत के पद पर नियुञ्चत करने की फिराक में है।ज् आयोग से जुड़े अनेक लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर जो तथ्य बताये वे चौंकाने वाले थे और उनसे स्पष्ट होता गया कि उत्तर प्रदेश में अब विभिन्न नौकरियों में भर्ती घोटालों के साथ ही न्यायालयों में नियुक्तियां भी बिकाऊ होने लगी हैं। इस समय उ.प्र. कई लाख पदों पर नियुक्ति की-प्रक्रिया में घपले-घोटालों के खेल में उलझा है और न्यायालय एक एक कर सभी नियुक्तियों को रद्द करता जा रहा है। ऐसे में अगर न्यायधीशों की नियुक्तियों में ही मोटा पैसा चलने लगे तो जनता को न्याय कहां से मिलेगा? अगर ऐसा उपभोक्ता अदालतों में होने लगा तो मिलावटखोरी व घटिया माल की आमद झेल रही जनता के लिए चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा है।

आयोग द्वारा अधिसूचित व सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा जारी विज्ञापन में दी गयी रिक्तियों का जब आयोग की वेबसाइट पर जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्षों की सूची व कार्यकाल से मिलान किया गया तो अनेक अनियमितताएं व खामियां नजर आयीं। उपरोक्त सूची में क्रमांक 1 से 9 तक के जिलों में अभी रिक्ति है ही नहीं फिर भी विज्ञापन जारी किया गया। इन जिलों में जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्षों का कार्यकाल 2016 से 2020 के बीच में अलग-अलग तिथियों तक है। ऐसे में इनकी भर्ती का विज्ञापन क्यों निकाला गया?

क्रम सं. 10 से 14 तक में दिये गये जिलों में निश्चित रूप से पद खाली हैं किन्तु इनके विज्ञापन निकाले ही नहीं गये। आखिर क्यों? जबकि ये पांचों जिले यानि बरेली, गोरखपुर, बुलन्दशहर, गौतमबुद्ध नगर एवं वराणसी ‘एÓ श्रेणी में आते हैं और इनके अध्यक्षों का पद 3 से 4 महीनों में रिक्त हो रहा है या रिक्त है।

क्या है खेल और कौन है दोषी?

जानकार बता रहे हैं कि उ.प्र. राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के वर्तमान अध्यक्ष न्यायमूर्ति विरेन्द्र सिंह यादव की वर्तमान सपा सरकार से काफी नजदीकी है। उल्लेखनीय है इनके आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति की फाइल माननीय उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा तीन बार वापस की गयी थी क्योंकि ये योग्यता एवं नैतिकता के पैमानों पर खरे नहीं पाये गये थे किन्तु जैसे ही तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पदमुक्त हुए और नये मुख्य न्यायाधीश ने पदभार संभाला था उसके 24 घंटे के भीतर ही इनकी नियुक्ति पर मुहर लगा दी गयी। ये महोदय 3 जनवरी 2016 को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। ऐसे में इन्हें लगता है कि बुढ़ापे को सुरक्षित बनाया जाये और इस कारण नियुक्तियों व स्थानान्तरण में ‘मोटा पैसाÓ बनाने का खेल चलाया गया। आयोग से जुड़े लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर पूरा खेल बताया कि किस प्रकार पैसा बनाया जा रहा है। आयोग के अध्यक्ष का मुंह लगे व्यक्ति के माध्यम से निम्न तरीके से पैसा मांगा जा रहा है।

– जिन जिलों में जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष पद रिक्त हैं उन्हें भरने के लिए 5 से 15 लाख रुपये तक मांगे जा रहे हैं।
– जिन जिलों में वर्तमान में रिक्तियां नहीं हैं उनके भी विज्ञापन निकाल अग्रिम बुकिंग की जा रही है और पैसा लिया जा रहा है।
– जिन जिलों में रिक्तियां हैं और विज्ञापन नहीं निकाला गया, वहां पर अन्य जिलों से पैसा ले स्थानांतरित करने की योजना है।
– सदस्यों की नियुक्ति में भी एक से तीन लाख रुपये तक लिये जा रहे हैं।
ऐसे में सैंकड़ों लोगों ने सदस्य बनने का आवेदन कर पैसा दे नियुक्ति की जुगाड़ शुरु कर दी है। इस पूरे प्रकरण से जो बड़े प्रश्न उठ खड़े हुए हैं वे निश्चित रूप से बैचेनी व कुंठा पैदा करने वाले हैं-

1. क्या अब न्यायिक नियुक्तियों का मापदण्ड भी पैसा रह जायेगा?
2. क्या उ.प्र. के बहुत से जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष भ्रष्ट तरीके से पैसा/पावर का उपयोग कर अपने पदों पर नियुक्त हैं या होने जा रहे हैं? तो उपभोक्ता के अधिकारों का संरक्षण कौन करेगा?
3. क्या उ.प्र. के राज्यपाल अथवा उच्च-न्यायालय इस अनियमितता पर संज्ञान लेते हुए इस विज्ञापन को रद्द करेंगे और आयोग के अध्यक्ष को बर्खास्त कर जांच प्रक्रिया शुरु करेंगे?
मौलिक भारत संस्था ने इस भर्ती घोटाले पर गहरा क्षोभ व्यक्त करते हुए शीघ्र ही उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने का निर्णय लिया है। आयोग से सम्पर्क करने पर वहां के अधिकारियों ने इस प्रकार की किसी भी अनियमितता से इंकार किया है किन्तु तथ्य कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। ऐसे में उच्च न्यायालय में मामला जाने पर ही दूध का दूध पानी का पानी हो पायेगा।

क्या खेल है नियुक्ति के विज्ञापन में- एक नजर इस तालिका पर डालें-

क्र. विज्ञापन के अनुसार रिक्तियां रिक्ति की वास्तविक स्थिति (आयोग की वेबसाइट के अनुसार) वर्तमान अध्यक्ष कब से नियुक्त कब तक नियुक्त
1. मथुरा 9/7/19 राधेश्याम सिंह 22/11/14 9/7/19
2. कौशाम्बी 3/4/16 संध्या भट्ट 12/2/14 3/4/16
3. आजमगढ़ 17/2/20 राजकुमार 14/6/14 19/2/20
4. बलिया 9/8/18 रमेश चन्द्रमिश्रा 4/4/14 9/8/18
5. हमीर पुर 31/1/20 जयपाल सिंह 24/5/15 31/1/20
6. अम्बेडकर नगर 6/4/18 विजय प्रकाश मिश्रा 1/5/13 6/4/18
7. सीतापुर 6/7/17 ब्रिजेश चंद सक्सेना 13/3/13 6/7/17
8. कासगंज 23/7/16 यशपाल सिंह 18/5/11 23/7/16
9. बलरामपुर 31/3/18 रामनारायण मौर्य 1/4/15 31/3/18
10. बरेली 31/12/15 मौ. आदिल 11/8/11 31/12/15
11 गोरखपुर 31/12/15 सतीश चन्द्रसिंह 30/3/11 31/12/15
12. बुलन्दशहर वर्तमान में रिक्त रिक्त
13. गौतमबुद्ध नगर वर्तमान में रिक्त रिक्त
14. वाराणसी वर्तमान में रिक्त रिक्त

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