डी एन डी : यह दस किलोमीटर का पुल ,लूट के आयाम और मौलिक भारत की मांग मित्रों, सोमवार सात नबंबर,16 को उच्चतम न्यायलय में डी एन डी टोल वाले केस में सुनवाई है। जैसा कि आप सभी जानते हें कि मौलिक भारत की पहल पर इस टोल से जुड़े घोटाले जनता के सामने आ सके और पिछले 18 महीनो में हमारे सतत जमीनी संघर्षो का परिणाम है कि इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने 26 अक्टूबर 16 को इस पुल से टोल वसूली तुरंत प्रभाव से वापस ले ली और फिर टोल कंपनी उच्चतम न्यायलय में चली गयी। उससे पहले ही मौलिक भारत टोल मुक्ति संघर्ष समिति के संयोजक के.विकास गुप्ता के माध्यम से संस्था ने केवियट फाइल कर दिया। अपनी सुनवाई में उच्चतम न्यायलय ने टोल कंपनी को स्टे देने से मना कर दिया और अब 7 नबंबर को पुनः सुनवाई करेगी। सच तो यह है कि सन् 2001 से टोल वसूली के 6-7 बर्षों बाद ही जनता को लग गया था कि इस 10 किलोमीटर के पुल और सड़क का उससे कुछ ज्यादा ही वसूला जा रहा है। इसीलिए सन् 2008 -9 से ही इस टोल वसूली के खिलाफ आवाजे उठने लगी थी और कई छोटे बड़े विरोधो के बाद लोगो को समझ आ चूका था कि यह नोकरशाही के एक सिंडीकेट द्वारा रचित लूट का ऐसा मायाजाल है जिसकी लूट के सब हिस्सेदार हें। इस पुल को एक प्रोडक्ट नहीं बल्कि उद्योग बना दिया गया जो दिनरात पेसो की बारिश करता रहता था। स्थानीय नेताओ, समाजसेवियों और संस्थाओ को जब इस उद्योग का रहस्य समझ आता तब वे विरोध का स्वांग कर लूट के हिस्सेदार बन जाते क्योकि इस खेल में तो नोयडा प्राधिकरण भी हिस्सेदार था और लखनऊ का पंचम तल भी। जब विरोध होता एक जांच समिति बनाने की घोषणा हो जाती। किंतू आज तक बनी किसी भी जाँच समिति की रिपोर्ट ही नहीँ आयी और अगर आयी तो अमल नहीं हुई। सरकार, प्रशासन और प्राधिकरण तीनों जगह मौलिक भारत ने टक्करें मारी मगर न तो मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के आदेश के बाद भी पूर्व नोकरशाहों के सिंडीकेट की जांच हुई और न ही टोल समझोते की शर्तों की समीक्षा और न ही खातों का ऑडिट। सेकड़ो बीघे अतरिक्त भूमि जो टोल कंपनी ने हड़पी उसकी जांच का भी अता पता नहीं। हज़ारों कऱोड के आयकर की लूट, 1 – 2 रूपये प्रति मीटर पर जमीन का आबंटन और 100 करोड़ की लागत को 408 करोड़ दिखलाना। हर साल लाभ के बाद भी बार बार हज़ारों करोड़ का घाटा दिखा टोल वसूली करते रहना कंपनी की बेशर्मी और राज्य व केंद्र सरकार की नाकामी का ही उदाहरण है। पुल से एक करोड़ रूपये प्रतिदिन टोल और इतना ही प्रतिदिन विज्ञापन का पैसा कमाया जाता था और शेयर बाज़ार से भी सेकड़ो करोड़ का मुनाफा अलग। अवैध रूप से कब्जाई जमीन की बिक्री और किराये की कमाई और आयकर से छुट अलग। आश्चर्य है कंपनी ने 100 करोड़ के पुल की टोल वसूली के खिलाफ चलने वाले मुकदमो में ही 196 करोड़ खर्च कर डाले और सरकार एवं प्राधिकरण इस जन लूट के बिजनेस मॉडल से हिस्सेदारी वसूलते रहे। वास्तव में यह टोल समझोता हमारी संवैधानिक व्यवस्था, कानून के शासन और जनता के हितो पर एक तमाचा है और उच्चतम न्यायलय को बिना किसी गुरेज के 7 नबंबर की सुनवाई में इस समझोते को रद्द कर देना चाहिये और सभी पक्षों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज कर उचित क़ानूनी कार्यवाही के आदेश देने चाहिए। साथ ही जनता के पैसों की जो लूट की गयी उसे वसूलकर जनहित के कार्यो में लगाने के आदेश देने चाहिए।
निवेदक
अनुज अग्रवाल
महासचिव, मौलिक भारत
विकास गुप्ता
संयोजक, मौलिक भारत डीएनडी टोल मुक्ति संघर्ष समिति
एवं समस्त सदस्य, मौलिक भारत