डॉ. मधुसूदन
***हिन्दी मध्यम से उच्च शिक्षा का ऐतिहासिक उदाहर
***जनभाषा ही आर्थिक उन्नति का रहस्य।
***देश के १३१ अरब रुपए (प्रति वर्ष) बच सकते हैं।
Thoughts on “हिन्दी शिक्षा माध्यम का आर्थिक लाभ (एक)”
(एक) ऐतिहासिक घटा हुआ उदाहरण:
एक घटा हुआ ऐतिहासिक उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ। चौधरी मुख्तार सिंह एक देशभक्त हिन्दीसेवी शिक्षाविद थे।१९४६ में वायसराय कौंसिल के सदस्य चौधरी मुख्तार सिंह ने जापान और जर्मनी की यात्रा की थी; और यह अनुभव किया था, कि यदि भारत को कम (न्यूनतम) समय में आर्थिक दृष्टि से उन्नत होना है तो उसे, जन भाषा में, जन वैज्ञानिक शिक्षित करने होंगे ।
उन्हों ने मेरठ के पास एक छोटे से देहात में ”विज्ञान कला भवन” नामक संस्था की स्थापना की। हिन्दी मिड़िल पास छात्रों को उसमें प्रवेश दिया। और हिन्दी के माध्यम से मात्र पांच वर्षों में उन्हें एम एस सी के कोर्स पूरे कराकर ”विज्ञान विशारद” की उपाधि से विभूषित किया। इस प्रकार के, प्रयोग से वे देश के शासन को दिखा देना चाहते थे, कि जापान की भाँति भारत का हर घर ”लघु उद्योग केन्द्र” हो सकता है।
दुर्भाग्यवश दो स्नातक टोलियों के निकलने के बाद (१९५३-१९५४) ही चौधरी जी की मृत्यु हो गई, और प्रदेश सरकार ने ”विज्ञान कलाभवन” को इंटर कॉलेज में परिवर्तित कर दिया। वहां तैयार किए गए ग्रन्थों के प्रति भी शासन को कोई मोह नहीं था।
(दो) जनभाषा ही, उन्नति का रहस्य:
पर इस प्रयोग ने यह भी सिद्ध तो किया ही, कि जनभाषा ही आर्थिक उन्नति का रहस्य है। जनविज्ञान, विकास की आत्मा है।
(तीन) मिडिल उत्तीर्ण छात्र मात्र ५ वर्ष में M Sc:
हिंदी मिडिल उत्तीर्ण छात्रों को प्रवेश देकर मात्र ५ वर्ष की शिक्षा के बाद M Sc की उपाधि प्राप्त कराई गई.
अब अंग्रेज़ी द्वारा उस समय, ११ वर्ष के बाद S S C + ४ वर्ष पर B Sc +२ वर्ष M Sc= १७ वर्ष की कुल पढाई होती थी। तो, हिंदी माध्यम से ५ वर्ष का लाभ हुआ।
(चार) चिन्तन क्षमता वृद्धि:
साथ साथ माध्यम हिन्दी होने के कारण, वैचारिक क्षमता का बढना, स्वतंत्र विचार की शक्ति बढना, चिंतन करने का अभ्यास इत्यादि लाभ भी हुए ही होंगे। अंग्रेज़ी की रट्टामार प्रणाली से पैदा होते, गुलाम या तोताराम तो नहीं बने।
(पाँच) अंग्रेज़ी माध्यम की भ्रान्तियाँ:
सबसे हानिकारक भ्रान्ति छात्र को गलत दिशामें भटकाना है।
(१) छात्र अंग्रेज़ी को ही बुद्धिमानीं का लक्षण मानता है।
(२) जिस आयु में उसका चिन्तन या विचार का विकास होना होता है; वह गलत दिशामें , अंग्रेज़ी को ही सीखने में लगा देता है।
(३) बहुतेरे छात्र यही भ्रम जीवन भर पालते हैं। फलस्वरूप हम स्वतंत्र चिन्तक या संशोधक के बदले अंग्रेज़ी के गुलाम अफसर पैदा करते हैं।
(छः) राष्ट्र की हानि:
जिस प्रजा को हम १२ वर्षों में M Sc करवाकर सुशिक्षित करवा लेते, उसे अंग्रेज़ी माध्यम से १७ वर्ष लगते हैं। प्रति छात्र हम ५ वर्ष व्यर्थ करते हैं। उतने ही वर्ष वह छात्र उत्पादन की प्रक्रिया में सम्मिलित होकर
स्वयं की और राष्ट्र की प्रगति में सहयोग कर सकता था, उससे हम वंचित रहते हैं।पाँच वर्ष अधिक धनार्जन और उत्पादन चक्र में सम्मिलित हो सकता था।
(सात) अंग्रेज़ी या अन्य विशेष भाषा चाहो तो?
अब जिन्हें अंग्रेज़ी की ही पढायी करनी है, उन्हें आगे और २ वर्ष मात्र अंग्रेज़ी ही पढाइए। जैसे पी. एच. डी. के लिए (१२ क्रेडिट) ४ पाठ्य पुस्तकों के तुल्य जर्मन, फ़्रांसीसी, रूसी इत्यादि, किसी भी एक भाषा का अध्ययन करना पडता है। इसी के समान केवल अंग्रेज़ी ५ विषयों जितना, प्रति वर्ष अंग्रेज़ी पढाकर शिक्षित करें। दो वर्षों में इच्छित भाषा का स्वामित्व प्राप्त कर लेंगे।
(आठ) अन्य भाषाएँ:
ध्यान रहे विविध भाषाओं का ज्ञान आवश्यक है।
कभी रूसी आगे थी, कभी जर्मन थी, कभी अंग्रेज़ी आगे होती है।
हमें पर्याप्त मात्रा में चीनी, अरबी, रूसी, फ्रान्सीसी, जर्मन, हिब्रु, जापानी, इत्यादि भाषाओं के भी जानकार चाहिए।
आज अंग्रेज़ी के कुछ अधिक चाहिए, पर सारा सट्टा अंग्रेज़ी पर ही लगाना मूर्खता होगी।
हमारी अपनी संस्कृत, पालि, तमिल, अर्धमागधी इत्यादि भाषाओं के भी विद्वान चाहिए।
सीमापर चीनी गति विधियों को जानने के लिए चीनी के जानकार काफी मात्रामें चाहिए।
(नौ) आर्थिक आँकडों का गणित:
अभी आर्थिक आँकडों का गणित सामने रखता हूँ।
जन भाषा के माध्यम से वही ज्ञान पाने में, जो छात्र अंग्रेज़ी द्वारा पाता है, छात्र के कमसे कम ४ वर्ष बचते हैं।
देशके I N Rupees 287.5 billion (US$5.23 billion) बचते है। —२०११ के आँकडों के अनुसार।
देश के २८७.५ अबज रुपए बचते हैं। एक अबज =१०० करोड होते हैं।
{ये आँकडे कपिल सिब्बल जी के एक विवरण से लिए गए हैं।}
(दस) समर्पित और आदर्श शिक्षक:
शिक्षक समर्पित और आदर्श होने चाहिए। भ्रष्ट शिक्षक नहीं चलेंगे।क्यों कि, शिक्षक राष्ट्र के प्रगति चक्र में प्रबलातिप्रबल कडी है। आरक्षित या अरक्षित जो भी हो, पर ज्ञानी और प्रतिबद्ध शिक्षक चाहिए।
जैसे शिक्षा का “भाषा-माध्यम” मौलिक घटक है। उसी प्रकार शिक्षक भी संस्कार देता है, ज्ञान देता है, अनुकरण के लिए आदर्श उपलब्ध करता है।
शिक्षक को गुरू ब्रह्मा, विष्णु, महेश इत्यादि माना है…… आप जानते हैं। गुरू संस्कार का पुंज है। छात्र गुरूका बहुतेरा अंधानुकरण करता है।
(ग्यारह)आर्थिक लाभ- हानि:
जो ज्ञान अंग्रेज़ी द्वारा, M Sc तक पढकर, उपाधि(पदवी) अंग्रेज़ी के कारण, १७ वर्षों में मिलती है, वही हिन्दी द्वारा, १२ वर्ष में प्राप्त होती है। तो हमारा शिक्षापर किया गया ५/१७ व्यय बच जाता है.
{टाईम्स ऑफ़ इंडिया मई १३ -२०११ का समाचार}
As a part of the tenth Five year Plan (2002–2007), the central government of India outlined an expenditure of 65.6% of its total education budget of I N Rupees 438.25 billion (US$7.98 billion) i.e. I N R 287.5 billion (US$5.23 billion)
I (Reporter) was sharing the dais with minister Kapil Sibal in Hyderabad sometime back, where he mentioned that the number of students in India under the age of 14 is 134 million — a remarkable number.
{टाईम्स ऑफ़ इंडिया मई १३ -२०११ का समाचार} इन आँकडो का आधार पर निम्न गणित प्रस्तुत है।
(बारह) छात्र वर्षों की बचत:
१३४ मिल्लियन छात्र १४ वर्ष से कम आयु के हैं। प्रत्येक छात्र के ५ वर्ष भी लगभग लगाएं, तो १३४ million x ५ = ६७०,०००,००० छात्र वर्ष बच जाते हैं।
अब आप का राष्ट्रीय व्यय कम होता है।
६७० मिलियन वर्ष का अधिक काम कुल छात्र कर पाते।
ऐसा गुणाकारवाला गणित हमारे नेताओं ने करना चाहिए था।
ऐसे अनुमानित गणित से प्रायः ३० प्रति शत बचत होती है. अर्थात ०.३x४३८ =१३१ बिलियन रुपए= १३१०००००००००००० रुपए बच जाते हैं|
पाठकों कुछ स्थूल हिसाब और विचार आपके समक्ष रखे हैं।
सूचना:
ये अनुमानित गणित स्थूल ही है। पर आँख खोलनेवाला है। अफ्रिका के ४६ देश परदेशी माध्यम के कारण पिछडे हैं। क्या हम अफ्रिका के उदाहरण से कुछ सीख सकते थे? या हम मूर्ख थे?