BY : अनुज अग्रवाल
मौलिक भारत से हमारा आशय निश्चित रूप से अपने उस पुरातन से वह सभी सारगर्भित लेना है जिसके कारण हमारा देश भारतवर्ष एक बौद्धिक-आध्यात्मिक-सांस्कृतिक त्रयी के साथ ही आर्थिक व वैज्ञानिक रूप से भी समृद्ध स्वरूप ले पाया था। हम भारतीयों की उस महान परम्परा को पुनर्जीवित करने का पक्षधर हैं जिसमें भृगु, मनु एवं वेद परम्परा के माध्यम से प्रकृति के साथ मानव के रिश्ते को समझने, मनन करने व तूलिका बद्ध कर जीवन सूत्र बनाने की वैज्ञानिक परम्परा सदियों तक चली। जिस कारण हमारा देश अनेेकों उपनिषदों व जीवन दर्शनों के साथ ही जीवन के हर पहलू की विषद, वैज्ञानिक व व्यावहारिक परिभाषा दे पाया। हम मौलिक भारत में उस सनातन संस्कृति के अनुरूप मानसिकता वाले समाज की स्थापना करने के पक्षधर हैं जिसमें कोई सम्प्रदाय, जाति, लिंग, भाषा आदि के आधार पर भेदभाव नहीं होते थे और मानव समाज प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करता हुआ धर्म (कानून) के अनुरूप अर्थ व काम का उपभोग करता हुआ आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति को अपने जीवन का ध्येय समझता था। निश्चित रूप से वह समय अद्र्धशहरी व ग्रामीण – कृषि व व्यापार आधारित संयुक्त परिवार की त्रयी पर आधारित था और प्रकृति-गाय-गंगा के इर्द-गिर्द केन्द्रित था। हम समझते हैं कि औद्योगिकीकरण, नगरीय ढांचों, एकल परिवार व कृत्रिमता ने आधुनिक परिदृश्य को बदल दिया है, गाय से निकल कर अर्थव्यवस्था डॉलर के इर्द-गिर्द आ गयी है औरÓ भारत की शिक्षा गुरूकुल से निकल विद्यालयों, स्वास्थ्य आयुर्वेद से निकल एलोपैथी व न्याय पंचायतों से निकल बहुस्तरीय अदालतों की ओर केन्द्रित होता गया है। समाज उद्योग, व्यापार, सेवा क्षेत्र व कृषि क्षेत्र में बँटता गया। इस बदलाव के क्रम में हमारी निर्भरता विदेशों पर बढ़ती गयी और हम एक षड्यंत्र के तहत अपने जाँची परखी व आजमायी हुई जीवन पद्धति से एक संदिग्ध व शोषण पर आधारित जीवन पद्धति की ओर धकेल दिये गये। भारत के गुरूकुल जो निरंतर संवाद, शोध व नीति निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान करते थे, अब समाप्त हो चुके हैं। भारतीय मंदिर जो राजाओं को धर्म आधारित शासन प्रणाली को लागू करने के लिए सलाह देते थे व खजाने के रूप में उपयोग होते थे, को वर्तमान राज व्यवस्था ने अनुपयोगी मान लिया है। देश में मुगल-अंग्रेजी राज में स्थापित नये शासन तंत्र ने भारतीय समाज की धार्मिक-सांस्कृतिक व शैक्षिक जीवंतता को अपने लिए खतरा समझ, इसका शनै: शनै: क्षरण किया और शोषण की एक नयी व्यवस्था स्थापित की जो भारत की समग्र बौद्धिक क्षमता व संसाधनों की निरंतर निकासी की प्रक्रिया है। यह निकासी आबादी के 67 वर्ष बाद भी उसी प्रकार से जारी है और हमारी राजनीतिक शक्तियों, नौकरशाह व उद्योग व्यापार समूह सभी मिलकर इसे और अधिक गति, रूप और प्रकारों से जारी रखे हुए हैं जिसका कारण भारत का आम भारतीय आज भी मुख्य धारा से अलग-थलग हासिये पर पड़ा अस्तित्व के संघर्ष में रत है। हम पुरातन व आधुनिक भारत के बीच समन्वय, सांमजस्य व पुल बनाने के लिए संघर्षरत है।
कितना दुखद है कि हमारे यहाँ हजारों उच्च शिक्षा के संस्थान होने के बाद भी शोध व अनुसंधान में हमारी हिस्सेदारी नगण्य है। हमारे यहाँ के औद्योगिक विकास को ध्वस्त कर हमारी सरकारें विदेशों से आयात को बढ़ावा देती जा रही हैं। देश प्रत्येक दिन 15 से 20 हजार करोड़ रूपयों की बाहरी देशों को निकासी कर देता हे। इस कारण नयी पीढ़ी बेरोजगार है अथवा, सेल्स, मार्केटिंग व दलाली जैसे कार्य कर रही है और उद्योग विनिर्माण के स्थान पर एसेम्बलिंग। अभी हाल ही में कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा में 85 हजार भर्तियों के लिए 1.60 करोड़ युवकों ने हिस्सा लिया जो हमारी सरकार के रोजगार उत्पादन व शिक्षित बेरोजगार नौजवानों के बीच बढ़ते भयावह फासले को बता रहा है। टूटती मर्यादाओं, एकलवाद व परिवारों के बिखराव के बीच भारत का 25-30 करोड़ कुंठित युवा देश के लिए एक धरोहर होने की जगह भार बनता जा रहा है और देश में बड़ी अस्थिरता अथवा गृहयुद्ध के संकेत दे रहा है। हमारे प्रत्येक मंत्रालय व विभागों में गलत नीयत के लोग ऐसी नीतियाँ बना रहे हैं जो उनके अपने स्वार्थ व ‘लूट के साम्राज्य का पोषण करती रहें। ये लोग देश की जनता से कटे हुए हैं व व्यवस्था ही देश पर बोझ बन चुकी है। हम समझते हैं कि हमारे सपनों का मौलिक भारत तभी बन सकेगा जब देश-विदेशों से सामान आयत करना बंद कर अपने औद्योगिक उत्पादन को बढ़ा निर्यात करना शुरू कर देगें। हमारी निर्भरता तेल पर खत्म होकर देश में उपलब्ध परम्परागत व नये उर्जा श्रोतों पर होती जायेगी। साथ ही हम अपने सभी प्रकार के हथियारों का स्वयं उत्पादन करना प्रारम्भ कर सकेंगे। हम किसी भी गैर सरकारी व धार्मिक संस्था को किसी भी तरह की विदेशी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष सहायता को बंद करने की माँग करते हैं क्योकि भारत में अव्यवस्था व असंतोष भड़काने में यह धन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हम अपनी टेक्नोलॉजी, अपने शोध, अपनी संस्कृति, अपना ज्ञान, अपना विज्ञान व जीवन के हर क्षेत्र को भारतीय मापदंडों से निर्धारित करने के लिए संघर्षरत हैं और रहेंगे। हम भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य व न्याय के आर्थिक स्तरीकरण का विरोध करते हैं व इसकी सममित व्यवस्था को स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम चाहते हैं कि भारत के किसानों को पुराना सम्मान व फसल के सही दाम मिलना देश के समग्र विकास के लिए अपरिहार्य है। साथ ही महिलाओं की गरिमा व परिवार संस्था का संरक्षण दोनों ही आवश्यक है। हम आधुनिकता के नाम पर देशवासियों पर थोपी जा रही पाश्चात्यता, अंग्रेजी भाषा, अश्लीलता, नशा व सट्टे की संस्कृति का विरोध करते हैं और इसे रोकने की मांग करते हैं। हम हमारे ऌिफल्म, टीवी और मीडिया द्वारा भारतीयता परक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक मानते हैं।
मौलिक भारत मानता है कि पुरातन व नवीन जीवन पद्धतियों व संस्कृतियों के बीच सामंजस्य को स्थापित करने के लिए सतत शोध व अध्ययन आवश्यक है और इस दिशा में हम एक शोध संस्थान स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं। हम देश में विभिन्न विभागों की नीतियों को राष्ट्रीय हित में व हमारी संस्कृति के अनुकूल करने की प्रक्रिया विकसित करने हेतू एक शोध संस्थान व उन नीतियों को लागू करने हेतू एक दबाब समूह व चिंतक समूह के रूप में भी मौलिक भारत को स्थापित करने की प्रक्रिया में लगे हैं। इस क्रम में हम निरंतर प्रेसवार्ता, लेखन, पीआईएल/आरटीआई, चर्चा समूह, सेमिनार, संगठन का नेटवर्क, जनसभाओं, साहित्य का प्रकाशन, पत्रिकाओं/अखबार का संचालन अथवा लेखन, आंदोलनकारी गतिविधियों करने के लिए संकल्प बद्ध हैं। इसी क्रम में हम सभी समान मानसिकता व विचारों के लोगों, समूहों व संस्थाओं को एक मंच पर लाने के लिए प्रयासरत है।
मौलिक भारत यह मानता है कि वर्तमान नीतियों को लागू करने में व्यवस्था की असऌफलता के पीछे वहाँ बैठे लोगों को गलत नीयत है। हम गलत नीयत वाले लोगों के चयन की प्रक्रिया यानी चुनाव व्यवस्था में व्यापक सुधार की माँग कर रहे हैं। दलों में आंतरिक लोकतंत्र, चरणबद्ध तरीके से पंचायत से केन्द्र तक नेतृत्व की प्रोन्नति, उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण तथा उनकी स्पष्ट जवाबदेही आवश्यक है। सभी सरकारी, अद्र्धसरकारी, सार्वजनिक व गैर सरकारी नियुक्तियों में भी यही प्रक्रिया आवश्यक व अपरिहार्य है। हम मानते हैं वर्तमान नेतृत्व चाहे वह राजनीतिक हो अथवा सरकारी नौकर, भ्रष्ट व अनुपयोगी हो चुका है और उसे बदलना आवश्यक हैं। सत्ता परिवर्तन से अब किसी भी प्रकार का सुधार संभव नहीं है। अत: निम्न तीन कदमों की आवश्यकता हैं-
• जनकेन्द्रित व भारतीयतापरक नीतियों
• पूर्णत: लोकतांत्रिक व पारदर्शी ढांचा
• प्रशिक्षित व जवाबदेह नेतृत्व
इस व्यवस्था को एक दिन में लागू करना संभव नहीं है। इसके लिए प्राथमिक आवश्यकता विश्वसनीय नेतृत्व के विकास की है। हम काम कर रहे हैं नये नेतृत्व की प्रशिक्षण की प्रक्रिया व आयामों पर। इसके लिए एक व्यवस्थित पाठ्यक्रम व प्रशिक्षक तैयार करना हमारा प्राथमिक लक्ष्य है तथा एक आदर्श प्रशिक्षण केन्द्र का निर्माण भी। हम सभी वर्तमान लोकसेवकों व भविष्य में लोकसेवा के लिए उत्सुक लोकसेवाओं के सतत् प्रशिक्षण की माँग करते हैं। हम चाहते हैं कि पंचायत से लेकर केन्द्र तक देश भर में प्रशिक्षण केन्द्रों का राष्ट्रव्यापी ढांचा हो जो जनकेन्द्रित नीतियों जो जन संवाद व जनसंसद के माध्यम से बनायी जाये व शोध केन्द्रों द्वारा बताये गये तरीकों से प्रशिक्षण केंद्रों में प्रशिक्षित नेतृत्व द्वारा लागू की जाये। इस प्रकार से हम देश के क्रमबद्ध विकास का एक ढांचा भी तैयार कर रहे हैं जिससे अगले कुछ वर्षों में क्रमबद्ध तरीके से लागू कर भारत को भारतीयता से ओत-प्रोत एक समृद्ध, विकसित, सभी वर्गों के समान विकास वाले व विश्व के लिए एक आदर्श राष्ट्र के रूप में खड़ा किया जा सके।