देश के चुनावों के इतिहास को चुनाव आयोग बदलने जा रहा है। जिन चुनाव सुधारों का आग़ाज़ एक समय में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने किया था उसके बाद वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा उस दिशा में पहली बार इतने अधिक सक्रिय दिखे। ऐसा लग रहा है जैसे मौलिक भारत के लोकतंत्र को मज़बूत बनाने की दिशा में चुनाव सुधारों के संबंध में आयोग को दिए गए प्रतिवेदन को लागू करने की दिशा में हर संभव कदम उठाए जा रहे हैं। कोरोना गाइडलाईनस के बहाने उन्होंने देश की चुनावी राजनीति की दिशा ही बदल दी है। प्रमुख बिंदु देखिए-
1.चुनाव आयोग ने पदयात्रा, रोड शो पर लगाई पाबंदी
2.साइकिल रैली, बाइक रैली पर भी पाबंदी लगाई गई
3.नुक्कड़ सभाओं पर भी रोक लगाई गई
4.जीत के बाद जश्न की इजाजत नहीं
5.रात 8 बजे के बाद चुनाव प्रचार पर रोक
6.डोर-टू-डोर कैम्पेन के लिए 5 लोगों की इजाजत
7.सभी तरह की जनसभाओं पर रोक
8.डिजिटल, वर्चुअल चुनाव प्रचार करें पार्टियां
9.पोलिंग की टाइमिंग एक घंटे ज्यादा
10.कोरोना गाइडलाइन के हिसाब से चुनाव होंगे
11.लोगों से ज्यादा से ज्यादा मतदान करने की अपील
12.चुनाव नियमों के उल्लंघन पर सख्ती कार्रवाई होगी
13.गैरकानूनी पैसे, शराब पर कड़ी नजर रखेंगे
14.उम्मीदवार को आपराधिक इतिहास बताना होगा
15.चुनाव में धनबल के इस्तेमाल पर रोक
16.उम्मीदवार ऑनलाइन नामांकन कर सकेंगे
17.80+, दिव्यांग के लिए पोस्टल बैलेट
18.कोविट प्रभावित के लिए भी पोस्टल बैलेट
19.सभी कार्यक्रमों की वीडियोग्राफी होगी
20.900 ऑब्जर्वर चुनाव पर नजर रखेंगे
भारत में बिना रैली, रोड शो, नुक्कड़ सभा , शक्ति प्रदर्शनों आदि के चुनाव की कल्पना अकल्पनीय थी, किंतु समय की पुकार व कोरोना की मार ने सब कुछ करवा दिया। अब धन पशुओं व बाहुबलियों के खेल किसी हद तक नियंत्रण में आएँगे।हालाँकि अभी भी चुनाव से पूर्व मतदाताओं को पैसे व शराब आदि के लालच में मतदान करने की कोशिशें की जा सकती हैं जिन पर रोक लगाने की आवश्यकता है।
अब उम्मीदवार नामांकन से लेकर प्रचार तक सब डिजिटल ,मीडिया व संचार माध्यमों से ही कर पाएँगे और जनसम्पर्क भी मात्र पाँच लोगों की टीम के साथ ही संभव हो पाएगा। यानि शक्ति, सत्ता व धन का प्रदर्शन व दबाव पूरी तरह समाप्त।जो भी प्रमुख खर्च हैं प्रचार के सब का खर्च सफ़ेद धन से होगा। दूसरी प्रमुख बात मौलिक भारत द्वारा दिए गए सुझाव के अनुरूप अगर राजनीतिक दल किसी अपराधी को टिकिट देता है तो उसका विवरण व कारण तीन तीन बार अख़बारों व मीडिया के साथ साथ राजनीतिक दल की वेबसाइटों पर देना होगा। ऐसे में राजनीतिक दल विवादित व खरब छवि वाले और आपराधिक प्रवृत्ति वाले उम्मीदवारों को टिकिट देने से बचेंगे। साथ ही मतदाता के पास अपने उम्मीदवार को जानने व समझने का अधिक पारदर्शी अवसर होगा और वह अधिक बेहतर उम्मीदवार का चयन कर पाएगा।
चुनाव आयोग ने मौलिक भारत के सुझावों के अनुरूप सन 2015 में मतदाता सूची को आधार कार्ड से जोड़ने का अभियान प्रारंभ किया था जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक दिया गया था किंतु हाल ही में संसद द्वारा पारित क़ानून के माध्यम से उसे पुनः लागू किया जा रहा है। आशा है कि आगामी समय में देश में फ़र्ज़ी मतदाता व मतदान समाप्त ही जाएगा। राजनीतिक दलों द्वारा वोट के लिए तरह तरह की फ़्री सुविधाओं की घोषणा की जाती है।
तुम हमें वोट दो; हम तुम्हें-
… लैपटॉप देंगे ..
….सायकल देंगे
…स्कूटी देंगे ..
… हराम की बिजली देंगे ..
…. लोन माफ कर देंगे
..कर्जा डकार जाना, माफ कर देंगे
… ये देंगे .. वो देंगे … वगैरह, वगैरह।
क्या ये खुल्लम खुल्ला रिश्वत नहीं?
क्या इससे चुनाव प्रक्रिया बाधित नहीं हो रही !!
क्या यह उचित है? क्या आप कुछ भी प्रलोभन दे सकते हैं? ये जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा है इसकी “जवाबदेही”होनी चाहिये। साथ ही
जो पार्टी समाचार पत्र में व टीवी में अपने गुणों का बखान के लिए विज्ञापन देती है वह पार्टी फण्ड से दे ना कि सरकारी खजाने से।
वर्तमान सुधारों को स्थायी स्वरूप मिले व ऑनलाइन मतदान को विकल्प भी मतदाता को मिले इस दिशा में भी अब गंभीर प्रयासों को आवश्यकता है। अनिवार्य मतदान, सरकारी खर्च पर चुनाव , पूरे देश में लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकायो के चुनाव एक साथ कराने, उम्मीदवार के शपथपत्र के तथ्यों की चुनाव पूर्व ही जाँच जैसी मौलिक भारत की माँग भी अभी लंबित हैं, आशा है निकट भविष्य में इन पर भी काम होगा ताकि एक आदर्श लोकतंत्र के रूप में भारत पुष्पित पल्लवित हो सके।