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डी एन डी टोल और यादव सिंह सिंडीकेट : मौलिक भारत के दो बर्षों का संघर्ष और सफलता

डीएनडी टोल फ़्री होने के पाँच वर्ष पूरे होने पर यह तब की तस्वीर और पोस्ट एक बार फिर से :
डी एन डी टोल  और यादव सिंह सिंडीकेट : मौलिक भारत के दो बर्षों का संघर्ष और सफलता
साथियों,डी एन डी पुल पर टोल के नाम पर लूट करने वाले भ्रष्ट नोकरशाही सिंडीकेट के मान का मर्दन, उनके झूठे घमंड को मात्र 18 महिनों में चकनाचूर कर दिया मौलिक भारत के मुक्तिदूतो ने। हमारे साथी केप्टन विकास गुप्ता ने जब मुझसे यादव सिंह सिंडीकेट और फिर डी एन डी सिंडीकेट के भ्रष्टाचार के विरुद्ध मिलकर लड़ाई करने का प्रस्ताव दिया तब मुझे रत्तीभर अहसास नहीं था कि यह संघर्ष इतना खतरनाक और काँटों भरा है। अपने संगठन के सभी साथियो को तैयार कर हम इस लड़ाई में कूद पड़े। और पिछले दो बर्ष का एक निरंतर संघर्ष का अकल्पनीय दौर अब लगता है मुकाम पर पहुँचने की और है। मौलिक भारत में हम दर्जनों मुद्दों पर लड़ रहे हें किंतू जो निरंतर जनसम्पर्क, जनसंवाद, खुलासे, दर्जनों छोटी बड़ी बैठक, सेमीनार, नुक्कड़ नाटक, कार्यशाला, प्रेस वार्ता, प्रेस विज्ञप्ति,धरने, प्रदर्शन, मांगपत्र, सोशल मीडिया अभियान, आर टी आई, पी आई एल, मेल, शिकायत पत्र, दबाब बनाने का काम हमने यादव सिंह सिंडीकेट और डी एन डी टोल लूट सिंडीकेट के खिलाफ किया वह अभूतपूर्व रहा। हम पर निरंतर दबाब बनाये गए, धमकियां दी गयी और छल बल से तोड़ने की कोशिश की किंतू हम नहीं बिके। अकल्पनीय रूप से यादव सिंह के खिलाफ सी बी आई जाँच बैठी और अब वह जेल में है और अब नोयडा, ग्रेटर नोयडा एवं यमुना एक्सप्रेस वे तीनों प्राधिकरणो के ठेके (लगभग 20 हज़ार करोड़ रूपये सालाना) ई टेंडरिंग से उठते हे। इस कारण सरकार को 30% सालाना यानि 6000 करोड़ की बचत शुरू हो गयी।
डी एन डी का मामला 6 बर्षों से इलाहाबाद उच्च न्यायलय में लंबित था। किंतू फोनरवा ने इस मामले की तीव्र सुनवाई के लिए कुछ भी नहीं किया। जब मौलिक भारत ने 9 अप्रैल 2015 को लख़नऊ प्रेस क्लब में इस घोटाले का पूरा खुलासा किया तब उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे मीडिया में न छपने या न प्रसारित होने की पूरी कोशिश की। किंतू ज़ी न्यूज़ और दैनिक जागरण ने हमारा पूरा साथ दिया और यह घोटाला पूरे देश तक पहुंच गया। इसके बाद भाजपा,भारतीय किसान यूनियन,कोनरवा,जनहित मोर्चा आदि भी इस मुद्दे संघर्ष हेतू सामने आए किंतू किसी को भी न मुद्दे की गहराई पता थी और न आयाम। कोई भाजपा की दुकान चला रहा था तो कोई सपा की और कोई आआपा की तो कोई टोल कंपनी की। केंद्र में भाजपा की सरकार होते हुए भी क्षेत्र के सांसद जो मंत्री भी हें और विधायिका फर्जी शोर और बयानबाजी के अलावा कुछ ज्यादा नहीं कर सके और उनकी आँखों के सामने संसद से मात्र 10 किलोमीटर दूर रोज एक करोड़ रूपये की खुली अवैध वसूली (अप्रत्यक्ष रूप से 1000 करोड़ रूपये सालाना) जनता से होती रही। अगर ये सब लोग सच्चे दिल से चाहते तो यह टोल बहुत पहले ही बंद हो चूका होता।  मौलिक भारत का संघर्ष सत्य और न्याय का संघर्ष था इसलिए सफल हुआ। आज हमारा इन तथाकथित जागरूक सामजिक संस्थाओ और राजनीतिक नेताओं से प्रश्न है कि आप लोगों के होते हुए भी शहर में रोज बिल्डर जनता को लूट रहे हें। 20 लाख करोड़ से ज्यादा के घोटाले हो चुके हें। दर्जनों यादव सिंह खुलेआम घूम रहे हें। शहर अराजकता, अपराध, बीमारियों और गंदगी का अड्डा है। आखिर क्यों?
आपका
अनुज अग्रवाल
अध्यक्ष, मौलिक भारत

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